बार पढ़ा गया
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
मनुष्यों का पितरों के साथ कर्त्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - [हे मनुष्य !] (मा) नतौ (ते) तेरा (मनः) मन, (मा) न (ते) तेरे (असोः) प्राण का (मा) न (अङ्गानाम्)अङ्गों का, (मा) न (रसस्य) रस [वीर्य] का, (मा) न (ते) तेरे (तन्वः) शरीर का (किं चन) कुछ भी (इह) यहाँ पर से (हास्त) चला जावे ॥२४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य विद्वानों सेसुशिक्षित होकर प्रयत्न करे कि उसकी शारीरिक और आत्मिक अवस्था सदा स्वस्थ रहे॥२४॥
टिप्पणी: २४−(मा) निषेधे (ते) तव (मनः) चित्तम् (मा) (असोः) प्राणस्य (मा) (अङ्गानाम्) अवयवानाम् (मा) (रसस्य) वीर्यस्य (ते) (मा हास्त) ओहाङ् गतौ-लुङ्।मा गच्छेत् (ते) (तन्वः) शरीरस्य (किं चन) किमपि (इह) अत्र। अस्माकं मध्यात् ॥