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स्यो॒नास्मै॑ भवपृथिव्यनृक्ष॒रा नि॒वेश॑नी। यच्छा॑स्मै॒ शर्म॑ स॒प्रथाः॑ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स्योना । अस्मै । भव । पृथिवि । अनृक्षरा । निऽविशनी । यच्छ । अस्मै । शर्म । सऽप्रथा: ॥२.१९॥

अथर्ववेद » काण्ड:18» सूक्त:2» पर्यायः:0» मन्त्र:19


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

पृथिवी की विद्या का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (पृथिवि) हे पृथिवी ! (अस्मै) इस [पुरुष] के लिये (स्योना) सुख देनेहारी, (अनृक्षरा) बिना काँटेवालीऔर (निवेशनी) प्रवेश करने योग्य (भव) हो। और (सप्रथाः) विस्तारवाली तू (अस्मै)इस [पुरुष] के लिये (शर्म) शरण (यच्छ) दे ॥१९॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य पृथिवीविद्यामें निपुण होकर अनेक रत्नों और पदार्थों को प्राप्त करके निर्विघ्नता से आनन्दभोगें ॥१९॥यह मन्त्र महर्षिदयानन्दकृत संस्कारविधि अन्त्येष्टिप्रकरण मेंउद्धृत है और कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१।२२।१५ तथा यजु० ३५।२१ ॥
टिप्पणी: १९−(स्योना)सुखप्रदा (अस्मै) पुरुषाय (भव) (पृथिवि) हे भूमे (अनृक्षरा) अकण्टका (निवेशनी)प्रवेशयोग्या (यच्छ) देहि (शर्म) शरणम् (सप्रथाः) प्रथसा विस्तारेण सहिता त्वम्॥