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अन्त॑कोऽसिमृ॒त्युर॑सि ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अन्तक: । असि । मृत्यु : । असि ॥५.२॥

अथर्ववेद » काण्ड:16» सूक्त:5» पर्यायः:0» मन्त्र:2


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

आलस्यादिदोष के त्याग के लिये उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - तू (अन्तकः) अन्तकरनेवाला (असि) है और तू (मृत्युः) मृत्यु [के समान दुःखदायी] (असि) है ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! कुपश्यआदि करने से गठिया आदि रोग होते हैं, गठिया आदि से आलस्य और उससे अनेकविपत्तियाँ मृत्यु आदि होती हैं। इससे सब लोग दुःखों के कारण अति निद्रा आदि कोखोजकर निकालें और केवल परिश्रम की निवृत्ति के लिये ही उचित निद्रा का आश्रयलेकर सदा सचेत रहें ॥१-३॥
टिप्पणी: २−(अन्तकः) अन्तणिच्-ण्वुल्। अन्तयतीति अन्तकः। अन्तकरः (असि) (मृत्युः) मृत्युरिव दुःखप्रदः (असि) ॥