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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
आयु की वृद्धि के लिये उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - [हे प्रजाओ !] तुम (शक्वरीः) बलवती (स्थ) हो, (पशवः) सब प्राणी (मा उप) मेरे समीप (स्थेषुः) ठहरें, (अग्निः) ज्ञानस्वरूप जगदीश्वर (मित्रावरुणौ) दो श्रेष्ठ मित्र (मे) मेरे (प्राणापानौ) प्राण और अपान को और (मे) मेरी (दक्षम्) चतुराई को (दधातु) स्थिररक्खे ॥७॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य विद्वानोंके उपदेश और परमात्मा की उपासना में तत्पर रहते हैं, वे अपने शरीर और आत्मा सेस्वस्थ रहकर कार्यकुशल होते हैं ॥७॥ इति प्रथमोऽनुवाकः ॥
टिप्पणी: ७−(शक्वरीः)स्नामदिपद्यर्त्तिपॄशकिभ्यो वनिप्। उ० ४।११३। शक्नोतेर्वनिप्, ङीब्रेफौ।शक्तिमत्यः प्रजाः (स्थ) भवथ (पशवः) प्राणिनः (मा) माम् (उप) उपेत्य (स्थेषुः)तिष्ठन्तु (मित्रावरुणौ) मित्रवरौ (मे) मम (प्राणापानौ) श्वासप्रश्वासौ (अग्निः)ज्ञानस्वरूपः परमेश्वरः (मे) (दक्षम्) कार्यकुशलताम् (दधातु) स्थापयतु ॥