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स्व॒स्त्यद्योषसो॑ दो॒षस॑श्च॒ सर्व॑ आपः॒ सर्व॑गणो अशीय ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स्वस्ति । अद्य: । उषस: । दोषस: । च । सर्व: । आप: । सर्वऽगण: । अशीय ॥४.६॥

अथर्ववेद » काण्ड:16» सूक्त:4» पर्यायः:0» मन्त्र:6


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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

आयु की वृद्धि के लिये उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (आपः) हे आप्तविद्वानो ! (सर्वगणः) अपने सब गणों के सहित (सर्वः) सम्पूर्ण में (स्वस्ति)कल्याण से (अद्य) अब (उषसः) प्रभातवेलाओं को (च) और (दोषसः) रात्रियों को (अशीय) पाता रहूँ ॥६॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य आप्त विद्वानोंके सत्सङ्ग से प्रयत्न करें कि वे और उसके इष्ट मित्र प्रजागण आदि सदा रात-दिनसुखी रहें ॥६॥
टिप्पणी: ६−(स्वस्ति) कल्याणेन (अद्य) इदानीम् (उषसः) प्रभातवेलाः (दोषसः)दुष वैकृत्ये-असुन्। रात्रीः (च) (सर्वः) सम्पूर्णोऽहम् (आपः) हे आप्ताविद्वांसः (सर्वगणः) सर्वेष्टमित्रप्रजादिसहितः (अशीय) बहुलं छन्दसि। पा०२।३।७३। अश्नुतेः शपो लुकि लिङ्युत्तमैकवचने रूपम्। प्राप्नुयाम् ॥