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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
वेदवाणी की महिमा का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (वसवः) श्रेष्ठ पुरुष (त्वा) तुझको (दक्षिणतः) दाहिनी ओर से, (मरुतः) शूर पुरुष (त्वा) तुझको (उत्तरात्) ऊँचे वा बाएँ स्थान से, (आदित्याः) आदित्य [अखण्ड ब्रह्मचारी लोग] (पश्चात्) पीछे से (गोप्स्यन्ति) बचावेंगे, (सा) सो तू (अग्निष्टोमम्) सर्वव्यापक परमात्मा की स्तुति को (अति) अत्यन्त करके (द्रव) शीघ्र प्राप्त हो [ग्रहण कर] ॥८॥
भावार्थभाषाः - सब विद्वान् शूरवीर पुरुष वेद की रक्षा करें, जिससे ईश्वर के गुणों का अत्यन्त प्रकाश हो ॥८॥
टिप्पणी: ८−(वसवः) श्रेष्ठाः पुरुषाः (त्वा) (दक्षिणतः) दक्षिणहस्तस्थितदेशात् (उत्तरात्) उच्चस्थानात्। वामदेशात् (मरुतः) अ० १।२०।१। शूरवीराः (त्वा) (आदित्याः) अ० १।९।१। अ+दिति-ण्य। अखण्डव्रता ब्रह्मचारिणः (पश्चात्) (गोप्स्यन्ति) (सा) सा त्वम् (अग्निष्टोमम्) अग्नेः सर्वव्यापकस्य परमेश्वरस्य स्तुतिम् (अति) अत्यन्तम् (द्रव) शीघ्रं प्राप्नुहि ॥