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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
ब्रह्म के स्वरूप के विचार का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (जनाः) लोग (हिरण्यगर्भम्) तेज के गर्भ [आधार परमेश्वर] को (परमम्) सर्वोत्कृष्ट [प्रणव वा ओ३म्] और (अनत्युद्यम्) सर्वथा अकथनीय [ईश्वर] (विदुः) जानते हैं। (स्कम्भः) उस स्कम्भ [धारण करनेवाले परमात्मा] ने (अग्रे) पहिले ही पहिले (तत्) उस (हिरण्यम्) तेज को (लोके अन्तरा) संसार के भीतर (प्र असिञ्चत्) सींच दिया है ॥२८॥
भावार्थभाषाः - सर्वशक्तिमान् जगदीश्वर के गुण और सामर्थ्य मनुष्य की कथनशक्ति से बाहिर हैं। सृष्टि के प्रादुर्भाव में केवल परमेश्वर का ही तेज अर्थात् सामर्थ्य दीख पड़ता है ॥२८॥
टिप्पणी: २८−(हिरण्यगर्भम्) अ० ४।२।७। तेजसो गर्भमाधारम् (परमम्) सर्वोत्कृष्टं प्रणवम् (अनत्युद्यम्) वद व्यक्तायां वाचि-क्यप्। सर्वतोऽकथनीयं परमात्मानम् (जनाः) विद्वांसः (स्कम्भः) स्तम्भः। सर्वधारकः परमेश्वरः (तत्) पूर्वोक्तम् (अग्रे) सृष्ट्यादौ (प्र) प्रकर्षेण (असिञ्चत्) सिक्तवान् (हिरण्यम्) प्रकाशम् (लोके) (अन्तरा) मध्ये ॥