वांछित मन्त्र चुनें

अ॑न्तर्दे॒शा अ॑बध्नत प्र॒दिश॒स्तम॑बध्नत। प्र॒जाप॑तिसृष्टो म॒णिर्द्वि॑ष॒तो मेऽध॑राँ अकः ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अन्त:ऽदेशा: । अबध्नत । प्रऽदिश: । तम् । अबध्नत । प्रजापतिऽसृष्ट: । मणि: । द्विषत: । मे । अधरान् । अक: ॥६.१९॥

अथर्ववेद » काण्ड:10» सूक्त:6» पर्यायः:0» मन्त्र:19


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (अन्तर्देशाः) अन्तर्देशों ने (अबध्नत) [वैदिक नियम को] बाँधा है, (प्रदिशः) बड़ी दिशाओं ने (तम्) उस [वैदिक नियम] को (अबध्नत) बाँधा है। (प्रजापतिसृष्टः) प्रजापति [परमात्मा] के उत्पन्न किये हुए (मणिः) मणि [प्रशंसनीय वैदिक नियम] ने (मे) मेरे (द्विषतः) वैरियों को (अधरान्) नीचे (अकः) किया है ॥१९॥
भावार्थभाषाः - सब स्थानों के पदार्थ ईश्वरनियम अनुसार मनुष्य का उपकार करते हैं ॥१९॥
टिप्पणी: १९−(अन्तर्देशाः) अन्तराला दिशाः (प्रदिशः) पूर्वादयो दिशाः (प्रजापतिसृष्टः) प्रजापालकेन परमेश्वरेणोत्पन्नः (मणिः) प्रशस्तो वैदिक नियमः (द्विषतः) शत्रून् (मे) मम (अधरान्) नीचान् (अकः) अकार्षीत्। कृतवान्। अन्यद्गतम् ॥