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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
सब कामनाओं की सिद्धि का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (ऋतवः) ऋतुओं ने (तम्) उस [मणि, वैदिक नियम] को (अबध्नत) बाँधा है, (आर्तवाः) ऋतुओं के अवयवों ने (तम्) उस को (अबध्नत) बाँधा [माना] है, (संवत्सरः) संवत्सर [वर्ष वा काल] (तम्) उसको (बद्ध्वा) बाँधकर (सर्वम्) सब (भूतम्) जगत् को (वि) विविध प्रकार (रक्षति) पालता है ॥१८॥
भावार्थभाषाः - कारण और कार्य रूप काल परमात्मा के नियम से संसार का उपकार करता है ॥१८॥
टिप्पणी: १८−(ऋतवः) वसन्तादयः कालविशेषाः (तम्) नियमम् (अबध्नत) गृहीतवन्तः (आर्तवाः) ऋतु-अण्। ऋतूनामवयवाः (संवत्सरः) वर्षकालः (बद्ध्वा) गृहीत्वा (सर्वम्) (भूतम्) जगत् (वि) विविधम् (रक्षति) पाति ॥