बार पढ़ा गया
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
विद्वानों के कर्तव्य का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (ज्योतिष्मतीः) प्रकाशमयी (दिशः) दिशाओं की ओर (अभ्यावर्ते) मैं घूमता हूँ। (ताः) वे [दिशाएँ] (मे) मुझे (द्रविणम्) बल और (ताः) वे (मे) मुझे (ब्राह्मणवर्चसम्) ब्राह्मण [ब्रह्मज्ञानी] का प्रताप (यच्छन्तु) देवें ॥३८॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य सब दिशाओं से विज्ञान द्वारा बल प्राप्त करके ईश्वर आज्ञा का पालन करे ॥३८॥
टिप्पणी: ३८−(दिशः) प्राच्यादीः (ज्योतिष्मतीः) प्रकाशवतीः (अभ्यावर्ते) अभीत्य वर्तनं करोमि (ताः) दिशः (यच्छन्तु) ददतु। अन्यत् पूर्ववत् ॥