वांछित मन्त्र चुनें

तौदी॒ नामा॑सि क॒न्या घृ॒ताची॒ नाम॒ वा अ॑सि। अ॑धस्प॒देन॑ ते प॒दमा द॑दे विष॒दूष॑णम् ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तौदी । नाम । असि । कन्या । घृताची । नाम । वै । असि । अध:ऽपदेन । ते । पदम् । आ । ददे । विषऽदूषणम् ॥४.२४॥

अथर्ववेद » काण्ड:10» सूक्त:4» पर्यायः:0» मन्त्र:24


बार पढ़ा गया

पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी

सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।

पदार्थान्वयभाषाः - (तौदी) वृद्धि [बलवृद्धि] वाली (कन्या) कामनायोग्य [कन्या अर्थात् गुआरपाठा] (नाम) नामवाली (असि) तू है, (घृताची) घृत [समान रस] पहुँचानेवाली (नाम) नामवाली (वै) ही (असि) तू है। (अधस्पदेन) [शत्रु के] नीचे पद के कारण (ते) तेरे (विषदूषणम्) विषखण्डक (पदम्) पद को (आ ददे) मैं ग्रहण करता हूँ ॥२४॥
भावार्थभाषाः - गुआरपाठा ओषधि पुष्टिकारक और विषनाशक है, टिप्पणी मन्त्र १४ देखो। मनुष्य गुआरपाठे आदि ओषधियों द्वारा रोगों का नाश करके स्वस्थ रहें ॥२४॥
टिप्पणी: २४−(तौदी) अब्दादयश्च। उ० ४।९८। तु गतिवृद्ध्योः-द प्रत्ययः। तोदो वृद्धिः, अण्, ङीप्। तोदेन बलवृद्ध्या युक्ता (नाम) नाम्ना (असि) (कन्या) अ० १।१४।२। कनी दीप्तिकान्तिगतिषु-यक्। कमनीया। कुमारिका। ओषधिविशेषः (घृताची) घृतं रसमञ्चयति प्रापयति सा (नाम) (वै) एव (अधस्पदेन) शत्रूणां नीचपदेन (ते) तव (पदम्) प्रापणीयं गुणम् (आ ददे) गृह्णामि (विषदूषणम्) विषनाशकम् ॥