बार पढ़ा गया
पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (सिन्धवः) नदियाँ (सर्वेषाम्) सब (अहीनाम्) महाहिंसक [साँपों] के (विषम्) विष को (परा वहन्तु) दूर बहा ले जावें (तिरश्चिराजयः) तिरछी धारीवाले, (पृदाकवः) फुँसकारनेवाले साँप (हताः) मार डाले गये और (निपिष्टासः) कुचिल डाले गये [हों] ॥२०॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य सर्पसमान दुःखदायी दुर्गुणों को ऐसा नष्ट करे, जैसे मल आदि को पानी में बहा देते हैं ॥२०॥
टिप्पणी: २०−(अहीनाम्) म० १। सर्पाणाम् (सर्वेषाम्) (विषम्) (परा) दूरे (वहन्तु) नयन्तु (सिन्धवः) नद्यः। अन्यत् पूर्ववत्−म० १३ ॥