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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (मित्रः) सूर्य [के समान] (च च) और (वरुणः) जल [के समान] और (उभा) दोनों (वातापर्जन्या) वायु और मेघ [के समान गुणवाले] (इन्द्रः) बड़े ऐश्वर्यवान् पुरुष ने (मे) मेरे लिये (अहिम्) महाहिंसक [सर्प] को (अरन्धयत्) मारा है ॥१६॥
भावार्थभाषाः - परोपकारी विद्वान् वैद्य संसार के उपकार के लिये विषैले जीवों को वश में करे ॥१६॥
टिप्पणी: १६−(इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् वैद्यः (मे) मह्यम् (अहिम्) म० १। महाहिंसकं सर्पम् (अरन्धयत्) म० १०। मारितवान् (मित्रः) प्रेरकः सूर्यो यथा (च) (वरुणः) जलवद् गुणकारी (वातापर्जन्या) वायुमेघौ यथा (उभा) द्वौ ॥