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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (सका) वह [प्रसिद्ध] (कैरातिका) चिरायता और (कुमारिका) कुवारपाठा, (औषधम्) ओषधि (हिरण्ययीभिः) तेजोमयी [चमकीली, उजली] (अभ्रिभिः) खुरपियों से (गिरीणाम्) पहाड़ों की (सानुषु उप) सम भूमियों के ऊपर (खनति=खन्यते) खोदी जाती है ॥१४॥
भावार्थभाषाः - वैद्य लोग दूर-दूर से मँगाकर उपकारी ओषधियों का प्रयोग करते हैं, वैसे ही विद्वान् लोग विद्या प्राप्त करके मूर्खता का नाश करें ॥१४॥ यह (कैरातिका) शब्द कैरात वा किरातक अर्थात् चिरायते के लिये और (कुमारिका) शब्द कुमारी अर्थात् गुआरपाठे [घी गुआर] के लिये आया है ॥ चिरायते के संक्षिप्त नाम और गुण इस प्रकार हैं−भावप्रकाश, हरीतक्यादिवर्ग, श्लोक १४४, १४६ ॥ किराततिक्त, कैरात, कटुतिक्त और किरातक चिरायते के नाम हैं। वह सन्निपातज्वर, श्वास, कफ़, पित्त, रुधिरविकार और दाहनाशक तथा खाँसी, सूजन, प्यास, कुष्ठ, ज्वर, व्रण और कृमिरोगनाशक है ॥ गुआरपाठे के संक्षिप्त नाम और गुण−भावप्रकाश, गुडूच्यादिवर्ग, श्लोक २१३, २१४ ॥ कुमारी, गृहकन्या, कन्या, घृतकुमारिका घी कुवार के नाम हैं, घी-कुवार रेचक, शीतल, कड़वी, नेत्रों को हितकारी, रसायनरूप, मधुर, पुष्टिकारक, बलकारक, वीर्यवर्धक और वात, विषनाशक है ॥
टिप्पणी: १४−(कैरातिका) किरात−स्वार्थे कन्, अण् टाप् च। भूनिम्बः, ओषधिविशेषः (कुमारिका) कुमारी−स्वार्थे कन्, टाप् च। घृतकुमारिका, ओषधिविशेषः (सका) अव्ययसर्वनाम्नामकच् प्राक् टेः। पा० ५।३।७१। सा-अकच्। सा प्रसिद्धा (खनति) कर्मणि कर्तृप्रयोगः। खन्यते (भेषजम्) औषधम् (हिरण्ययीभिः) तेजोमयीभिः। उज्ज्वलाभिः (अभ्रिभिः) सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। अभ्र गतौ-इन् तीक्षाग्रैर्लोहदण्डैः (गिरीणाम्) शैलानाम् (उप) उपरि (सानुषु) समभूमिदेशेषु ॥