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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
सर्प रूप दोषों के नाश का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (वज्रिणा) वज्रधारी (इन्द्रेण) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले मनुष्य] करके (हताः) मारे गये [साँप] (नष्टासवः) प्राणों से नष्ट और (नष्टविषाः) विष से नष्ट [होवें]। (इन्द्रः) इन्द्र [बड़े ऐश्वर्यवाले पुरुष] ने [साँपों को] (जघान) मारा था, और (वयम्) हम ने (जघ्निम) मारा था ॥१२॥
भावार्थभाषाः - दुष्टों के मारने में पूर्वजों के समान सब लोग शूर का साथ देवें ॥१२॥
टिप्पणी: १२−(नष्टासवः) विगतप्राणाः (नष्टविषाः) विगतगरलाः (हताः) मारिताः (इन्द्रेण) परमैश्वर्यवता पुरुषेण (वज्रिणा) वज्रधारिणा (जघान) नाशितवान् (जघ्निम) नाशितवन्तः (वयम्) ॥