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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (भवाशर्वौ) सुख देनेवाले और दुःख नाश करनेवाले [राजा और मन्त्री दोनों] (पापकृते) पाप करनेवाले (कृत्याकृते) हिंसा करनेवाले और (दुष्कृते) दुष्कर्मी पुरुष के लिये (देवहेतिम्) विद्वानों के वज्र (विद्युतम्) बिजुली [के शस्त्र] को (अस्यताम्) गिरावें ॥२३॥
भावार्थभाषाः - राजा और मन्त्री दुष्टों को यथावत् दण्ड देकर प्रजा में शान्ति रक्खें ॥२३॥
टिप्पणी: २३−(भवाशर्वौ) अ० ८।२।७। सुखस्य भावयिता कर्ता भवो राजा, दुःखस्य शरिता नाशकः शर्वो मन्त्री च तौ (अस्यताम्) प्रेरयताम् (पापकृते) पापकारिणे (कृत्याकृते) म० २। हिंसाकारिणे (दुष्कृते) दुष्कर्मिणे (विद्युतम्) अशनिरूपं शस्त्रम् (देवहेतिम्) विदुषां वज्रम् ॥