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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
राजा के कर्तव्य दण्ड का उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (विनद्धा) खुली हुई, (गर्दभी इव) गदही के समान (मानदती) अति रेंकती हुई तू (अप क्राम) भाग जा। (वीर्यवता) पराक्रमी (ब्रह्मणा) ब्रह्मज्ञानी करके (इतः) यहाँ से (नुत्ता) निकाली हुई तू (कर्तॄन्) हिंसकों में (नक्षस्व) पहुँच ॥१४॥
भावार्थभाषाः - नीतिनिपुण लोगों के उपाय से हिंसक लोग आपस में विरोध करके निर्बल होजावें ॥१४॥
टिप्पणी: १४−(अप क्राम) दूरं गच्छ (नानदती) णद अव्यक्ते शब्दे यङ्लुकि-शतृ। भृशं ध्वनिं कुर्वती (विनद्धा) वियुक्ता (गर्दभी) गर्द रवे-अभच्। रासभी (इव) यथा (कर्तॄन्) म० ३। हिंसकान् (नक्षस्व) गच्छ (इतः) अस्मात् स्थानात् (नुत्ता) बहिष्कृता (ब्रह्मणा) चतुर्वेदिना (वीर्यवता) पराक्रमिणा ॥