देवता: अपांनपात् सोम आपश्च देवताः
ऋषि: सिन्धुद्वीपं कृतिः, अथवा अथर्वा
छन्द: गायत्री
स्वर: जल चिकित्सा सूक्त
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पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी
आरोग्यता के लिये उपदेश।
पदार्थान्वयभाषाः - (सोमः) बड़े ऐश्वर्यवाले परमेश्वर ने [चन्द्रमा वा सोमलता ने] (मे) मुझे (अप्सु अन्तः) व्यापनशील जलों में (विश्वानि) सब (भेषजा=०-नि) औषधों को, (च) और (विश्वशम्भुवम्) संसार के सुखदायक (अग्निम्) अग्नि [बिजुली वा पाचनशक्ति] को बताया है ॥२॥
भावार्थभाषाः - परमेश्वर सब विद्याओं का प्रकाशक है, चन्द्रमा औषधियों को पुष्ट करता है और सोमलता मुख्य ओषधि है। यह सब पदार्थ जैसे जल द्वार औषधों, अन्न आदि और शरीरों के बढ़ाने, बिजुली और पाचन शक्ति पहुँचाने और तेजस्वी करने में मुख्य कारण होते हैं, वैसे ही मनुष्यों को परस्पर सामर्थ्य बढ़ाकर उपकार करना चाहिये ॥२॥
टिप्पणी: २−अप्सु। १।४।३। व्यापयितृषु, जलेषु जलवद् गुणिषु मनुष्येषु−इत्यर्थः। सोमः। अर्त्तिस्तुसुहु०। उ० १।१४०। इति षु प्रसवैश्वर्ययोः−मन्। सवति ऐश्वर्यहेतुर्भवतीति सोमः। परमेश्वरः। चन्द्रमाः। सोमलता। अब्रवीत्। ब्रूञ् व्यक्तायां वाचि−लङ्। उपदिष्टवान्। अकथयत्। अन्तः। मध्ये। विश्वानि। सर्वाणि। भेषजा। १।४।४। शेश्छन्दसि बहुलम्। पा० ६।१।७० इति शेर्लोपः। भेषजानि। भयनिवारणानि। औषधानि। अग्निम्। अङ्गेर्नलोपश्च। उ० ४।५०। इति अगि गतौ-नि, नलोपः। तेजः। वैश्वानरम्। वह्निम्। पाचनशक्तिम्। विश्व-शंभुवम्। क्विप् च। पा० ३।२।७६। इति विश्व+शम्+भू-क्विप्, उवङ्, आदेशः। विश्वस्य जगतः सुखस्य भावयितारं कर्तारम्, सर्वसुखकरम् ॥