वांछित मन्त्र चुनें

उ॒त स्मा॑स्य॒ द्रव॑तस्तुरण्य॒तः प॒र्णं॑ न वेरेनु॑वाति प्रग॒र्धिनः॑। श्ये॒नस्ये॑व॒ ध्रज॑तोऽअङ्क॒सं परि॑ दधि॒क्राव्णः॑ स॒होर्जा तरि॑त्रतः॒ स्वाहा॑ ॥१५॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒त। स्म॒। अ॒स्य॒। द्रव॑तः। तु॒र॒ण्य॒तः। प॒र्णम्। न। वेः। अनु॑। वा॒ति॒। प्र॒ग॒र्धिन॒ इति॑ प्रऽग॒र्धिनः॑। श्ये॒नस्ये॒वेति॑ श्ये॒नस्य॑ऽइव। ध्रज॑तः। अ॒ङ्क॒सम्। परि॑। द॒धि॒क्राव्ण॒ इति॑ दधि॒ऽक्राव्णः॑। स॒ह। ऊ॒र्जा। तरित्र॑तः स्वाहा॑ ॥१५॥

यजुर्वेद » अध्याय:9» मन्त्र:15


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

सेनापति आदि राजपुरष कैसा पराक्रम करें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजपुरुषो ! जो (ऊर्जा) पराक्रम और (स्वाहा) सत्यक्रिया के (सह) साथ (अस्य) इस (द्रवतः) रसप्रद वृक्ष का पत्ता और (तुरण्यतः) शीघ्र उड़नेवाले (वेः) पक्षी के (पर्णम्) पंखों के (न) समान (उत) और (प्रगर्धिनः) अत्यन्त इच्छा करने (ध्रजतः) चाहते हुए (श्येनस्येव) बाज पक्षी के समान तथा (तरित्रतः) अति शीघ्र चलते हुए (दधिक्राव्णः) घोड़े के सदृश (अङ्कसम्) अच्छे लक्षणयुक्त मार्ग में (परि) (अनु) (वाति) सब प्रकार अनुकूल चलता है, (स्म) वही पुरुष शत्रुओं को जीत सकता है ॥१५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो वीर पुरुष नीलकण्ठ श्येनपक्षी और घोड़े के समान पराक्रमी होते हैं, उनके शत्रु लोग सब ओर से विलीन हो जाते हैं ॥१५॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

सेनापत्यादयः कथं पराक्रमेरन्नित्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(उत) अपि (स्म) एव (अस्य) (द्रवतः) द्रवीभूतस्य (तुरण्यतः) शीघ्रं गच्छतः (पर्णम्) पत्रं पक्षो वा (न) इव (वेः) पक्षिणः (अनु) (वाति) गच्छति (प्रगर्धिनः) प्रकर्षेणाभिकाङ्क्षिणः (श्येनस्येव) (ध्रजतः) गच्छतः (अङ्कसम्) लक्षणान्वितं मार्गम् (परि) (दध्रिक्राव्णः) अश्वस्य (सह) (ऊर्जा) पराक्रमेण (तरित्रतः) अतिशयेन संप्लवतः (स्वाहा) सत्यया क्रियया ॥ अयं मन्त्रः (शत०५.१.५.२०) व्याख्यातः ॥१५॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजप्रजनाः ! य ऊर्जा स्वाहाऽस्य द्रवतस्तुरण्यतो वेः पर्णं नोत प्रगर्धिनो ध्रजतः श्येनस्येव तरित्रतो दधिक्राव्ण इवाङ्कसं पर्यनुवाति स्म स एव शत्रुं जेतुं शक्नोति ॥१५॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। ये वीराः ! नीलकण्ठपक्षिवच्छ्येनवदश्ववच्च पराक्रमन्ते, तेषां शत्रवः सर्वतो निलीयन्ते ॥१५॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जे वीर पुरुष नीलकंठ, श्येन पक्षी व घोड्याप्रमाणे पराक्रमी असतात त्यांच्या शत्रूंचा सर्वस्वी विनाश होतो.