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देव॑ सवितः॒ प्रसु॑व य॒ज्ञं प्रसु॑व य॒ज्ञप॑तिं॑ भगा॑य। दि॒व्यो ग॑न्ध॒र्वः के॑त॒पूः केतं॑ नः पुनातु वा॒चस्पति॒र्वाजं॑ नः स्वदतु॒ स्वाहा॑ ॥१॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

देव॑। स॒वि॒त॒रिति॑ सवितः। प्र। सु॒व॒। य॒ज्ञम्। प्र। सु॒व॒। य॒ज्ञप॑ति॒मिति॑ य॒ज्ञऽप॑तिम्। भगा॑य। दि॒व्यः। ग॒न्ध॒र्वः। के॒त॒पूरिति॑ केत॒ऽपूः। केत॑म्। नः॒। पु॒ना॒तु॒। वा॒चः। पतिः॑। वाज॑म्। नः॒। स्व॒द॒तु॒। स्वाहा॑ ॥१॥

यजुर्वेद » अध्याय:9» मन्त्र:1


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वान् लोग चक्रवर्ती राजा को कैसा-कैसा उपदेश करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देव) दिव्यगुणयुक्त (सवितः) सम्पूर्ण ऐश्वर्य्यवाले राजन् ! आप (भगाय) सब ऐश्वर्य्य की प्राप्ति के लिये (स्वाहा) वेदवाणी से (यज्ञम्) सब को सुख देनेवाले राजधर्म का (प्र) (सुव) प्रचार और (यज्ञपतिम्) राजधर्म के रक्षक पुरुष को (प्र) (सुव) प्रेरणा कीजिये, जिससे (दिव्यः) प्रकाशमान दिव्य गुणों में स्थित (गन्धर्वः) पृथिवी को धारण और (केतपूः) बुद्धि को शुद्ध करनेवाला (वाचस्पतिः) पढ़ने-पढ़ाने और उपदेश से विद्या का रक्षक सभापति राजपुरुष है, वह (नः) हमारी (केतम्) बुद्धि को (पुनातु) शुद्ध करे और हमारे (वाजम्) अन्न को सत्य वाणी से (स्वदतु) अच्छे प्रकार भोगे ॥१॥
भावार्थभाषाः - न्याय से प्रजा का पालन और विद्या का दान करना ही राजपुरुषों का यज्ञ करना है ॥१॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वद्भिश्चक्रवर्त्ती कथं कथमुपदेष्टव्य इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(देव) दिव्यगुणसम्पन्न (सवितः) सकलैश्वर्यसंयुक्त सम्राट् ! (प्र) (सुव) ईर्ष्व (यज्ञम्) सर्वेषां सुखजनकं राजधर्मम् (प्र) (सुव) (यज्ञपतिम्) राजधर्मपालकम् (भगाय) समग्रैश्वर्य्याय (दिव्यः) प्रकाशमानेषु क्षत्रगुणेषु भवः (गन्धर्वः) गां पृथिवीं धरतीति, पृषोदरादिना गोशब्दस्य गम्भावः (केतपूः) यः केतं प्रज्ञां पुनाति पवित्रीकरोति सः (केतम्) प्रज्ञाम्। केतमिति प्रज्ञानामसु पठितम्। (निघं०३.९) (नः) अस्माकं प्रजाराजपुरुषाणाम् (पुनातु) शुन्धतु (वाचस्पतिः) अध्ययनाध्यापनोपदेशैर्वाण्याः पालकः (वाजम्) अन्नम् (नः) अस्माकम् (स्वदतु) आभुनक्तु स्वाहा) वेदवाचा। अयं मन्त्रः (शत०५.१.१.१६) व्याख्यातः ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे देव सवितस्त्वं भगाय स्वाहा यज्ञं प्रसुव, यज्ञपतिं प्रसुव, यतो दिव्यो गन्धर्वः केतपूर्वाचस्पतिः स्वाहा नः केतं पुनातु, नः स्वाहा वाजं स्वदतु ॥१॥
भावार्थभाषाः - न्यायेन प्रजापालनं विद्याप्रदानकरणमेव राज्ञां यज्ञोऽस्ति ॥१॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजपुरुषांचा यज्ञ म्हणजे न्यायाने प्रजापालन व विद्येचा प्रसार होय.