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स॒त्रस्य॒ऽऋद्धि॑र॒स्यग॑न्म॒ ज्योति॑र॒मृता॑ऽअभूम। दिवं॑ पृथि॒व्याऽअध्या॑रुहा॒मावि॑दाम दे॒वान्त्स्व॒र्ज्योतिः॑ ॥५२॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒त्रस्य॑। ऋद्धिः॑। अ॒सि॒। अग॑न्म। ज्योतिः॑। अ॒मृ॑ताः। अ॒भू॒म॒। दिव॑म्। पृ॒थि॒व्याः। अधि। आ। अ॒रु॒हा॒म॒। अवि॑दाम। दे॒वान्। स्वः॑। ज्योतिः॑ ॥५२॥

यजुर्वेद » अध्याय:8» मन्त्र:52


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी गृहस्थों के विषय में विशेष उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! आप (सत्रस्य) प्राप्त हुए राजप्रजाव्यवहाररूप यज्ञ के (ऋद्धिः) समृद्धिरूप (असि) हैं, आप के सङ्ग से हम लोग (ज्योतिः) विज्ञान के प्रकाश को (अगन्म) प्राप्त होवें और (अमृताः) मोक्ष पाने के योग्य (अभूम) हों, (दिवम्) सूर्यादि (पृथिव्याः) पृथिवी आदि लोकों के (अधि) बीच (अरुहाम) पूर्ण वृद्धि को पहुँचें (देवान्) विद्वानों दिव्य-दिव्य भोगों (ज्योतिः) विज्ञानविषय और (स्वः) अत्यन्त सुख को (अविदाम) प्राप्त होवें ॥५२॥
भावार्थभाषाः - जब तक सब की रक्षा करनेवाला धार्म्मिक राजा वा आप्त विद्वान् न हो, तब तक विद्या और मोक्ष के साधनों को निर्विघ्नता से पाने के योग्य कोई भी मनुष्य नहीं हो सकता और न मोक्षसुख से अधिक कोई सुख है ॥५२॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरपि गृहस्थविषये विशेषमाह ॥

अन्वय:

(सत्रस्य) सङ्गतस्य राजव्यवहाररूपस्य यज्ञस्य (ऋद्धिः) सम्यग् वृद्धिः (असि) (अगन्म) प्राप्नुयाम (ज्योतिः) विज्ञानप्रकाशम् (अमृताः) प्राप्तमोक्षाः (अभूम) भवेम, अत्रोभयत्र लिङर्थे लुङ् (दिवम्) सूर्यादिम् (पृथिव्याः) भूम्यादेश्च जगतः (अधि) उपर्य्युत्कृष्टभावे (आ) समन्तात् (अरुहाम) प्रादुर्भवेम, अत्र विकरणव्यत्ययः (अविदाम) विन्देमहि (देवान्) विदुषो दिव्यान भोगान् वा (स्वः) सुखम् (ज्योतिः) विज्ञानविषयम् ॥ अयं मन्त्रः (शत०४.६.९.११-१२) व्याख्यातः ॥५२॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वँस्त्वं सत्रस्य ऋद्धिरसि, त्वत्सङ्गेन वयं ज्योतिरगन्म, अमृता अभूम, दिवः पृथिव्या अध्यारुहाम, देवाञ्ज्योतिः स्वश्चऽविदाम ॥५२॥
भावार्थभाषाः - यावत् सर्वेषां रक्षको धार्मिको राजाऽऽप्तो विद्वाँश्च न भवेत्, तावत् कश्चिन्निर्विघ्नं विद्यामोक्षानुष्ठानं कृत्वा तत्सुखं प्राप्तुन्नार्हति, न च मोक्षसुखादधिकतरं किञ्चित् सुखमस्ति ॥५२॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जोपर्यंत सर्वांचा रक्षणकर्ता धार्मिक राजा किंवा आप्त विद्वान नसेल तोपर्यंत कोणत्याही माणसाला सहजपणे व निर्विघ्नपणे विद्या आणि मोक्षाचे साधन मिळू शकत नाही व मोक्षापेक्षा अधिक सुख कोणतेही नाही.