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क॒दा च॒न स्त॒रीर॑सि॒ नेन्द्र॑ सश्चसि दा॒शुषे॑। उपो॒पेन्नु म॑घव॒न् भूय॒ऽइन्नु ते॒ दानं॑ दे॒वस्य॑ पृच्यतऽआदि॒त्येभ्य॑स्त्वा ॥२॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क॒दा। च॒न। स्त॒रीः। अ॒सि॒। न। इ॒न्द्र॒। स॒श्च॒सि॒। दा॒शुषे॑। उपो॒पेत्युप॑ऽउप। इत्। नु। म॒घ॒व॒न्निति॑ मघऽवन्। भूयः॑। इत्। नु। ते॒। दान॑म्। दे॒वस्य॑। पृ॒च्य॒ते॒। आ॒दि॒त्येभ्यः॑। त्वा॒ ॥२॥

यजुर्वेद » अध्याय:8» मन्त्र:2


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी गृहस्थों के धर्म का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) परमैश्वर्य्य से युक्त पति ! जिस कारण आप (कदा) कभी (चन) भी (स्तरीः) अपने स्वभाव को छिपानेवाले (न) नहीं (असि) हैं, इस कारण (दाशुषे) दान देनेवाले पुरुष के लिये (उपोप) समीप (सश्चसि) प्राप्त होते हैं। हे (मघवन्) प्रशंसित धनयुक्त भर्ता ! (देवस्य) विद्वान् (ते) आप का जो (दानम्) दान अर्थात् अच्छी शिक्षा वा धन आदि पदार्थों का देना है, (इत्) वही (नु) शीघ्र (भूयः) अधिक करके मुझ को (पृच्यते) प्राप्त होवे, इसी से मैं स्त्रीभाव से (आदित्येभ्यः) प्रति महीने सुख देनेवाले आपका आश्रय करती हूँ ॥२॥
भावार्थभाषाः - विवाह की कामना करनेवाली युवती स्त्री को चाहिये कि जो छल-कपटादि आचरणों से रहित प्रकाश करने और एक ही स्त्री को चाहनेवाला, जितेन्द्रिय, सब प्रकार का उद्योगी, धार्मिक और विद्वान् पुरुष हो, उसके साथ विवाह करके आनन्द में रहे ॥२॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेवाह ॥

अन्वय:

(कदा) कस्मिन् काले (चन) अपि (स्तरीः) स्वभावाच्छादकः संकुचितः (असि) भवसि (न) निषेधे (इन्द्र) परमैश्वर्य्यपते ! (सश्चसि) प्राप्नोषि। सश्चतीति गतिकर्मसु पठितम्। (निघं०२.१४) (दाशुषे) दानशीलाय (उपोप) सामीप्ये। उपर्य्यध्यधसः सामीप्ये। (अष्टा०८.१.७) इति द्वित्वम्। (इत्) एव (नु) क्षिप्रम्। न्विति क्षिप्रनामसु पठितम्। (निघं०२.१५) (मघवन्) प्रशंसितधनयुक्त (भूयः) अधिकम् (इत्) एव (नु) शीघ्रम् (ते) तव (दानम्) (देवस्य) विदुषः (पृच्यते) सम्बध्यते (आदित्येभ्यः) मासेभ्यः (त्वा) त्वां सुखदातारम्। अयं मन्त्रः (शत०४.३.५.१०-११) व्याख्यातः ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र परमैश्वर्ययुक्त पते ! यतस्त्वं कदाचन स्तरीर्नासि, तस्माद् दाशुष इन्नुपोप सश्चसि। हे मघवन् ! देवस्य ते तव यद् दानमिन्नु भूयः पृच्यते, अतोऽहं स्त्रीत्वेनादित्येभ्यः सदा सुखप्रापकं त्वा त्वामाश्रये ॥२॥
भावार्थभाषाः - विवाहकामनया युवत्या स्त्रिया यच्छलकपटाचरणरहितः सत्यभावप्रकाशक एकस्त्रीव्रतो जितेन्द्रिय उद्योगी धार्मिको दाता विद्वान् भवेत्, तमुपयम्य निरन्तरमानन्दितव्यम् ॥२॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - विवाहेच्छू तरुणीने छळ करणाऱ्या, कपटी पुरुषाशी विवाह न करता एकाच स्त्रीशी प्रीती करणाऱ्या, जितेन्द्रिय, सर्व प्रकारे उद्योगी, धार्मिक व विद्वान पुरुषाशी विवाह करून आनंदात राहावे.