वांछित मन्त्र चुनें

उ॒प॒या॒मगृ॑हीतोऽस्य॒न्तर्य॑च्छ मघवन् पा॒हि सोम॑म्। उ॒रु॒ष्य राय॒ऽएषो॑ यजस्व ॥४॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒प॒या॒मगृ॑हीत॒ इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। अ॒न्तः। य॒च्छ॒। म॒घ॒व॒न्निति॑ मघऽवन्। पा॒हि॒। सोम॑म्। उ॒रु॒ष्य। रायः॑। आ। इषः॑। य॒ज॒स्व॒ ॥४॥

यजुर्वेद » अध्याय:7» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मन से आत्मा के बीच में कैसे प्रयत्न करे, यह उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे योग चाहनेवाले ! जिससे तू (उपयामगृहीतः) योग में प्रवेश करनेवाले नियमों से ग्रहण किये हुए के समान (असि) है, इस कारण (अन्तः) भीतरले जो प्राणादि, पवन, मन और इन्द्रियाँ हैं, इनको (यच्छ) नियम में रख। हे (मघवन्) परमपूजित धनी के समान ! तू (सोमम्) योगविद्यासिद्ध ऐश्वर्य्य को (पाहि) रक्षा कर और जो अविद्यादि क्लेश हैं, उनको (उरुष्य) अत्यन्त योगविद्या के बल से नष्ट कर, जिससे (रायः) ऋद्धि और (इषः) इच्छासिद्धियों को (आयजस्व) अच्छे प्रकार प्राप्त हो ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। योग जिज्ञासु पुरुष को चाहिये कि यम, नियम आदि योग के अङ्गों से चित्त आदि अन्तःकरण की वृत्तियों को रोक और अविद्यादि दोषों का निवारण करके संयम से ऋद्धि सिद्धियों को सिद्ध करें ॥४॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरात्मनाभ्यन्तरे कथं प्रयतितव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(उपयामगृहीतः) उपात्तैर्यमैर्गृहीत इव (असि) (अन्तः) आभ्यन्तरस्थान् प्राणादीन् (यच्छ) निगृहाण (मघवन्) परमपूजित धनिसदृश ! (पाहि) रक्ष (सोमम्) योगसिद्धमैश्वर्य्यम् (उरुष्य) बहुना योगाभ्यासेनाविद्यादिक्लेशानन्तं नय। अत्रोरूपपदात् षोऽन्तकर्म्मणीत्यस्मात् क्विप् ततो नामधातुत्वात् क्विप् मध्यमैकवचनप्रयोगः। (रायः) ऋद्धिसिद्धिधनानि (आ) समन्तात् (इषः) इच्छासिद्धीः (यजस्व) ॥ अयं मन्त्रः (शत०४.१.१.१५) व्याख्यातः ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे योगजिज्ञासो ! यस्त्वमुपयामगृहीत इवासि तस्मादन्तर्य्यच्छ। हे मघवन् ! सोमं पाहि क्लेशानुरुष्य यतो राय इष आयजस्व ॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। योगार्थिना यमादिभिर्योगाङ्गैश्चित्तादीन्निरुध्याविद्यादिदोषान् निवार्य्य संयमेनर्द्धिसिद्धयो निष्पाद्यन्ताम् ॥४॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. योगजिज्ञासू लोकांनी यमनियम इत्यादी योगांगांच्या साह्याने चित्तातील अंतःकरणाच्या वृत्ती रोखाव्यात व अविद्या इत्यादी दोषांचे निवारण करून संयमाने राहावे आणि ऋद्धी-सिद्धी प्राप्त करून घ्याव्यात.