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को॑ऽसि कत॒मो᳖ऽसि॒ कस्या॑सि॒ को नामा॑सि। यस्य॑ ते॒ नामाम॑न्महि॒ यं त्वा॒ सोमे॒नाती॑तृपाम। भूर्भुवः॒ स्वः᳖ सुप्र॒जाः प्र॒जाभिः॑ स्या सु॒वीरो॑ वी॒रैः सु॒पोषः॒ पोषैः॑ ॥२९॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कः। अ॒सि॒। क॒त॒मः। अ॒सि॒। कस्य॑। अ॒सि॒। कः। नाम॑। अ॒सि॒। यस्य॑। ते॒। नाम॑। अम॑न्महि। यम्। त्वा॒। सोमे॑न। अती॑तृपाम। भूरिति॒ भूः। भुव॒रिति॑ भु॒वः। स्व॒रिति॒ स्वः॑। सु॒प्र॒जा इति॑ सुऽप्र॒जाः। प्र॒जाभि॒रिति॑ प्र॒ऽजाभिः॑। स्या॒म्। सु॒वीर॒ इति॑ सु॒ऽवीरः॑। वी॒रैः। सु॒पोष॒ इति॑ सु॒ऽपोषः॑। पोषैः॑ ॥२९॥

यजुर्वेद » अध्याय:7» मन्त्र:29


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

सभापति राजा प्रजा, सेना और सभ्यजनों को क्या-क्या कहे, यही अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - सभा, सेना और प्रजा में रहनेवाले हम लोग पूछते हैं कि तू (कः) कौन (असि) है, (कतमः) बहुतों के बीच कौन-सा (असि) है, (कस्य) किसका (असि) है, (कः) क्या (नाम) तेरा नाम (असि) है, (यस्य) जिस (ते) तेरी (नाम) संज्ञा को (अमन्महि) जानें और (यम्) जिस (त्वा) तुझ को (सोमेन) धन आदि पदार्थों से (अतीतृपाम) तृप्त करें। यह कह उनसे सभापति कहता है कि (भूः) भूमि (भुवः) अन्तरिक्ष और (स्वः) आदित्यलोक के सुख के सदृश आत्मसुख की कामना करनेवाला मैं तुम (प्रजाभिः) प्रजालोगों के साथ (सुप्रजाः) श्रेष्ठ प्रजावाला (वीरैः) तुम वीरों से (सुवीरः) श्रेष्ठ वीरयुक्त (पोषैः) पुष्टिकारक पदार्थों से (सुपोषः) अच्छा पुष्ट (स्याम्) होऊँ अर्थात् तुम सब लोगों से पृथक् न तो स्वतन्त्र मेरा कोई नाम और न कोई विशेष सम्बन्धी है ॥२९॥
भावार्थभाषाः - सभापति राजा को योग्य है कि सत्य न्याययुक्त प्रिय व्यवहार से सभा सेना और प्रजा के जनों की रक्षा करके उन सभों को उन्नति देवे और अति प्रबल वीरों को सेना में रक्खे, जिससे कि बहुत सुख बढ़ानेवाले राज्य से भूमि आदि लोकों के सुख को प्राप्त होवे ॥२९॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

सभापती राजा प्रजासेनासभ्यजनान् प्रति किं किं वदेदित्याह ॥

अन्वय:

(कः) (असि) (कतमः) बहूनां मध्ये कः (असि) (कस्य) (असि) (कः) (नाम) ख्यातिः (असि) (यस्य) (ते) तव (नाम) (अमन्महि) विजानीमहि, अत्र लिडर्थे लङ्। बहुलं छन्दसि। (अष्टा०४.४.७३) इति विकरणलुक्। (यम्) (त्वा) त्वाम् (सोमेन) ऐश्वर्य्येण (अतीतृपाम) तर्प्पयाम (भूः) भूमेः (भुवः) अन्तरिक्षस्य (स्वः) आदित्यलोकस्य (सुप्रजाः) सुष्ठु प्रजासहितः (प्रजाभिः) अनुकूलाभिः पालनीयाभिः सह (स्याम्) भवेयम् (सुवीरः) प्रशस्तवीरयुक्तः (वीरैः) शरीरात्मबलयुक्तैर्युद्धकुशलैः सह (सुपोषः) प्रशस्तपुष्टिः (पोषैः) पुष्टिभिः ॥ अयं मन्त्रः (शत०४.५.६.४) व्याख्यातः ॥२९॥

पदार्थान्वयभाषाः - सभ्यसेनास्थप्रजाजना वयं त्वं कोऽसि, कतमोऽसि, कस्यासि, को नामासि किन्नाम्ना प्रसिद्धोऽसि, यस्य ते तव नाम वयममन्महि, यं त्वा त्वां सोमेनातीतृपामेति पृच्छामो ब्रूहि। तान् प्रति सभापतिराह भूर्भुवःस्वर्ल्लोकसुखमिवात्मसुखमभीप्सुरहं युष्माभिः प्रजाभिः सुप्रजाः वीरैः सुवीरः पौषैः सुपोषश्च स्यामिति प्रतिजाने ॥२९॥
भावार्थभाषाः - सभापती राजा सत्यन्यायप्रियव्यवहारेण सभ्यसैन्यप्रजाजनानभिरक्ष्य वर्द्धयेत्। प्रबलतरवीरान् सेनासु सम्पादयेद्, यत उत्कृष्टसुखवर्द्धकेन राज्येन भूम्यादिसुखं प्राप्नुयादिति ॥२९॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजाने सत्याने व न्यायाने वागावे. सभा, सेना व प्रजा यांचे रक्षण करावे आणि त्या सर्वांची उन्नती करावी. अतिशय प्रबळ वीरांना सेनेमध्ये ठेवावे त्यामुळे सुखकारक राज्य निर्माण होते व पृथ्वीवर सुख नांदते.