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अग्ने॒ नय॑ सु॒पथा॑ रा॒येऽअ॒स्मान् विश्वा॑नि देव व॒युना॑नि वि॒द्वान्। यु॒यो॒ध्य᳕स्मज्जु॑हुरा॒णमेनो॒ भूयि॑ष्ठां ते॒ नम॑ऽउक्तिं विधेम ॥१६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑। नय॑। सु॒पथेति॑ सु॒ऽपथा॑। रा॒ये। अ॒स्मान्। विश्वा॑नि। दे॒व॒। व॒युना॑नि। वि॒द्वान् ॥ यु॒यो॒धि। अ॒स्मत्। जु॒हु॒रा॒णम्। एनः॑। भूयि॑ष्ठाम्। ते॒। नम॑ऽउक्ति॒मिति॒ नमः॑ऽउक्तिम्। वि॒धे॒म॒ ॥१६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:40» मन्त्र:16


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

ईश्वर किन मनुष्यों पर कृपा करता है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देव) दिव्यरूप (अग्ने) प्रकाशस्वरूप करुणामय जगदीश्वर ! जिस से हम लोग (ते) आपके लिये (भूयिष्ठाम्) अधिकतर (नमउक्तिम्) सत्कारपूर्वक प्रशंसा का (विधेम) सेवन करें, इससे (विद्वान्) सबको जाननेवाले आप (अस्मत्) हम लोगों से (जुहुराणम्) कुटिलतारूप (एनः) पापाचरण को (युयोधि) पृथक् कीजिये, (अस्मान्) हम जीवों को (राये) विज्ञान, धन वा धन से हुए सुख के लिये (सुपथा) धर्मानुकूल मार्ग से (विश्वानि) समस्त (वयुनानि) प्रशस्त ज्ञानों को (नय) प्राप्त कीजिये ॥१६ ॥
भावार्थभाषाः - जो सत्यभाव से परमेश्वर की उपासना करते, यथाशक्ति उसकी आज्ञा का पालन करते और सर्वोपरि सत्कार के योग्य परमात्मा को मानते हैं, उनको दयालु ईश्वर पापाचरण मार्ग से पृथक् कर धर्मयुक्त मार्ग में चला के विज्ञान देकर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को सिद्ध करने के लिये समर्थ करता है, इससे एक अद्वितीय ईश्वर को छोड़ किसी की उपासना कदापि न करें ॥१६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

ईश्वरः काननुगृह्णातीत्याह ॥

अन्वय:

(अग्ने) स्वप्रकाशस्वरुप-करुणामय-जगदीश्वर ! (नय) गमय (सुपथा) धर्म्येण मार्गेण (राये) विज्ञानाय धनाय वसुसुखाय (अस्मान्) जीवान् (विश्वानि) अखिलानि (देव) दिव्यस्वरूप (वयुनानि) प्रशस्यानि प्रज्ञानानि। वयुनमिति प्रशस्यनामसु पठितम् ॥ (निघं०३.८) प्रज्ञानामसु (निघं०३.१) (विद्वान्) यः सर्वं वेत्ति सः (युयोधि) पृथक्कुरु (अस्मत्) अस्माकं सकाशात् (जुहुराणम्) कौटिल्यम् (एनः) पापाचरणम् (भूयिष्ठाम्) बहुतमाम् (ते) तुभ्यम् (नमउक्तिम्) सत्कारपुरःसरां प्रशंसाम् (विधेम) परिचरेम ॥१६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे देवाग्ने परमेश्वर ! यतो वयं ते भूयिष्ठां नमउक्तिं विधेम तस्माद् विद्वांस्त्वमस्मज्जुहुराणमेनो युयोध्यस्मान् राये सुपथा विश्वानि वयुनानि नय प्रापय ॥१६ ॥
भावार्थभाषाः - ये सत्यभावेन परमेश्वरमुपासते यथासामर्थ्यं तदाज्ञां पालयन्ति, सर्वोपरि सत्कर्त्तव्यं परमात्मानं मन्यन्ते, तान् दयालुरीश्वरः पापाचरणमार्गात् पृथक्कृत्य धर्म्यमार्गे चालयित्वा विज्ञानं दत्वा धर्मार्थकाममोक्षान् साद्धुं समर्थान् करोति, तस्मात् सर्वं एकमद्वितीयमीश्वरं विहाय कस्याप्युपासनं कदाचिन्नैव कुर्य्युः ॥१६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे सत्यभावनेने परमेश्वराची उपासना करतात व यथाशक्ती त्याच्या आज्ञेचे पालन करतात. परमेश्वराबद्दल सर्व प्रकारे श्रद्धा बाळगतात तेव्हा दयाळू परमेश्वर त्यांना पापाचरणाच्या मार्गापासून दूर करून धर्मयुक्त मार्गाकडे वळवून ज्ञान देतो व धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष सिद्ध करण्यास समर्थ करतो. त्यामुळे एका अद्वितीय ईश्वराला सोडून इतर कोणाचीही उपासना करू नये.