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म॒हीनां॒ पयो॑ऽसि वर्चो॒दाऽअ॑सि॒ वर्चो॑ मे देहि। वृ॒त्रस्या॑सि क॒नीन॑कश्चक्षु॒र्दाऽअ॑सि॒ चक्षु॑र्मे देहि ॥३॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

म॒हीनाम्। पयः॑। अ॒सि॒। व॒र्चो॒दा इति॑ वर्चः॒ऽदाः। अ॒सि॒। वर्चः॑। मे॒। दे॒हि॒। वृ॒त्रस्य॑। अ॒सि॒। क॒नीन॑कः। च॒क्षु॒र्दा इति॑ चक्षुः॒दाः। अ॒सि॒। चक्षुः॑। मे॒। दे॒हि॒ ॥३॥

यजुर्वेद » अध्याय:4» मन्त्र:3


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर इस जलसमूह से उत्पन्न हुए मेघ का क्या निमित्त है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो यह (महीनाम्) पृथिवी आदि के (पयः) जल रस का निमित्त (असि) है, (वर्चोदाः) दीप्ति का देनेवाला (असि) है, जो (मे) मेरे लिये (वर्चः) प्रकाश को (देहि) देता है, जो (वृत्रस्य) मेघ का (कनीनकः) प्रकाश करनेवाला (असि) है, वा (चक्षुर्दाः) नेत्र के व्यवहार को सिद्ध करनेवाला (असि) है, वह सूर्य्य (मे) मेरे लिये (चक्षुः) नेत्रों के व्यवहार को (देहि) देता है ॥३॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को जानना उचित है कि जिस सूर्य्य के प्रकाश के विना वर्षा की उत्पत्ति वा नेत्रों का व्यवहार सिद्ध कभी नहीं होता, जिसने इस सूर्य्यलोक को रचा है, उस परमेश्वर को कोटि असंख्यात धन्यवाद देते रहें ॥३॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरस्य जलसमूहजन्यस्य मेघस्य किं निमित्तमस्तीत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(महीनाम्) पृथिवीनाम्, महीति पृथिवीनामसु पठितम्। (निघं०१.१) (पयः) रसनिमित्तम् (असि) अस्ति, अत्र सर्वत्र व्यत्ययः (वर्चोदाः) दीप्तिं ददातीति (असि) अस्ति (वर्चः) प्रकाशम् (मे) मह्यम् (देहि) ददाति (वृत्रस्य) मेघस्य (असि) अस्ति (कनीनकः) यः कनति दीपयतीति स एव कनीनकः, अत्र कनीधातोर्बाहुलकादौणादिक ईनप्रत्ययस्ततः स्वार्थे कन् (चक्षुर्दाः) चष्टेऽनेन तद्ददातीति (असि) अस्ति (चक्षुः) नेत्रव्यवहारम् (मे) मह्यम् (देहि) ददाति। अयं मन्त्रः (शत० (३.१.३.९-१५) व्याख्यातः ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - यो महीनां पयोऽ(स्य)स्ति, वर्चोदा अ(स्य)स्ति, यो मे मह्यं वर्चोदा ददाति, वृत्रस्य कनीनकोऽस्ति, चक्षुर्दा अस्ति, स सूर्य्यो मे मह्यं चक्षुर्ददाति ॥३॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्नहि सूर्य्यस्य प्रकाशेन विना वृष्ट्युत्पत्तिश्चक्षुर्व्यवहारश्च सिध्यति। येनायं सूर्य्यो निर्मितस्तस्मा ईश्वराय कोटिशो धन्यवादा देया इति वेद्यम् ॥३॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी हे जाणले पाहिजे की, ज्या सूर्यप्रकाशाविना पर्जन्याची निर्मिती होऊ शकत नाही व नेत्र पाहू शकत नाहीत त्या सूर्यलोकाला परमेश्वराने निर्माण केलेले आहे. त्याबद्दल त्याला असंख्य धन्यवाद दिले पाहिजेत.