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आ॒या॒साय॒ स्वाहा॑ प्राया॒साय॒ स्वाहा॑ संया॒साय॒ स्वाहा॑ विया॒साय॒ स्वाहो॑द्या॒साय॒ स्वाहा॑। शु॒चे स्वाहा॒ शोच॑ते॒ स्वाहा॑ शोच॑मानाय॒ स्वाहा॒ शोका॑य॒ स्वाहा॑ ॥११ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ॒या॒सायेत्या॑ऽया॒साय॑। स्वाहा॑। प्रा॒या॒साय॑। प्र॒या॒सायेति॑ प्रऽया॒साय॑। स्वाहा॑। सं॒या॒सायेति॑ सम्ऽया॒साय॑। स्वाहा॑। वि॒या॒सायेति॑ विऽया॒साय॑। स्वाहा॑। उद्या॒सायेत्यु॑त्ऽया॒साय॑। स्वाहा॑ ॥ शु॒चे। स्वाहा॑। शोच॑ते। स्वाहा॑। शोच॑मानाय। स्वाहा॑। शोका॑य। स्वाहा॑ ॥११ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:39» मन्त्र:11


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को जन्मान्तर में सुख के लिये क्या कर्त्तव्य है, उस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोग (आयासाय) अच्छे प्रकार प्राप्त होने को (स्वाहा) इस शब्द का (प्रायासाय) जाने के लिये (स्वाहा) (संयासाय) सम्यक् चलने के लिये (स्वाहा) (वियासाय) विविध प्रकार वस्तुओं की प्राप्ति को (स्वाहा) (उद्यासाय) ऊपर को जाने के लिये (स्वाहा) (शुचे) पवित्र के लिये (स्वाहा) (शोचते) शुद्धि करनेवाले के लिये (स्वाहा) (शोचमानाय) विचार के प्रकाश के लिये (स्वाहा) और (शोकाय) जिस में शोक करते हैं, उसके लिये (स्वाहा) इस शब्द का प्रयोग करो ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि पुरुषार्थ-सिद्धि के लिये सत्य वाणी, बुद्धि और क्रिया का अनुष्ठान करें, जिससे देहान्तर और जन्मान्तर में मङ्गल हो ॥११ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैर्जन्मान्तरे सुखार्थं किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(आयासाय) समन्तात् प्रापणाय (स्वाहा) (प्रायासाय) प्रयाणाय (स्वाहा) (संयासाय) सम्यग्गमनाय (स्वाहा) (वियासाय) विविधप्राप्तये (स्वाहा) (उद्यासाय) ऊर्ध्वं गमनाय (स्वाहा) (शुचे) पवित्राय (स्वाहा) (शोचते) शुद्धिकर्त्रे (स्वाहा) (शोचमानाय) विचारप्रकाशाय (स्वाहा) (शोकाय) शोचन्ति यस्मिँस्तस्मै (स्वाहा) ॥११ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यूयमायासाय स्वाहा प्रायासाय स्वाहा संयासाय स्वाहा वियासाय स्वाहोद्यासाय स्वाहा शुचे स्वाहा शोचते स्वाहा शोचमानाय स्वाहा शोकाय स्वाहा प्रयुङ्ग्ध्वम् ॥११ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः पुरुषार्थादिसिद्धये सत्या वाग् मतिः क्रिया चानुष्ठेया, येन देहान्तरे जन्मान्तरे च मङ्गलं स्यात् ॥११ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी पुरुषार्थाच्या सिद्धीसाठी सत्यवाणी, बुद्धी व कार्य (क्रिया) यांचे अनुष्ठान करावे ज्यामुळे देहांतरी व जन्मजन्मांतरी कल्याण व्हावे.