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इन्द्र॒स्यौज॑ स्थ म॒खस्य॑ वो॒ऽद्य शिरो॑ राध्यासं देव॒यज॑ने पृथि॒व्याः। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शी॒र्ष्णे ॥६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्र॑स्य। ओजः॑। स्थ॒। म॒खस्य॑। वः॒। अ॒द्य। शिरः॑। रा॒ध्या॒स॒म्। दे॒व॒यज॑न॒ इति॑ देव॒ऽयज॑ने। पृ॒थि॒व्याः ॥ म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे। म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे ॥६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:37» मन्त्र:6


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे मैं (इन्द्रस्य) परमैश्वर्य्ययुक्त पुरुष के (ओजः) पराक्रम को (राध्यासम्) सिद्ध करूँ वैसे (अद्य) आज (पृथिव्याः) भूमि के (देवयजने) उस स्थान में जहाँ विद्वानों का पूजन होता हो (शिरः) उत्तम अवयव के समान (वः) तुम लोगों को सिद्ध करूँ (शीर्ष्णे) शिर सम्बन्धी (मखाय) धर्मात्माओं के सत्कार के निमित्त वचन के लिये (त्वा) तुझको (मखस्य) प्रिय आचरणरूप व्यवहार के सम्बन्धी (त्वा) आपको सिद्ध करूँ (शीर्ष्णे) उत्तम गुणों के प्रचारक (मखाय) शिल्पयज्ञ के विधान के लिये (त्वा) आपको (मखस्य) सत्याचरण रूप व्यवहार के सम्बन्धी (त्वा) आपको सिद्ध करूँ (शीर्ष्णे) उत्तम (मखाय) विज्ञान की प्रकटता के लिये (त्वा) आपको और (मखस्य) विद्या को बढ़ानेहारे व्यवहार के सम्बन्धी (त्वा) आपको सिद्ध करूँ। वैसे तुम लोग भी पराक्रमी (स्थ) होओ ॥६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य धर्मयुक्त कार्यों को करते हैं, वे सबके शिरोमणि होते हैं ॥६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

(इन्द्रस्य) परमैश्वर्ययुक्तस्य (ओजः) पराक्रमम् (स्थ) भवत (मखस्य) यज्ञस्य (वः) युष्मान् (अद्य) (शिरः) (राध्यासम्) (देवयजने) (पृथिव्याः) भूमेः (मखाय) धार्मिकाणां सत्कारनिमित्ताय (त्वा) त्वां सत्कारम् (मखस्य) प्रियाचरणाख्यस्य व्यवहारस्य (त्वा) त्वाम् (शीर्ष्णे) शिरः सम्बन्धिने वचसे (मखाय) शिल्पयज्ञविधानाय (त्वा) त्वाम् (मखस्य) (त्वा) (शीर्ष्णे) उत्तमगुणप्रचारकाय (मखाय) विज्ञानोद्भावनाय (त्वा) (मखस्य) विद्यावृद्धिकरस्य व्यवहारस्य (त्वा) (शीर्ष्णे) ॥६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथाहमिन्द्रस्यौजौ राध्यासं तथाऽद्य पृथिव्या देवयजने शिरोवद् वो राध्यासम्। शीर्ष्णे मखाय त्वा मखस्य त्वा राध्यासं शीर्ष्णे मखाय त्वा मखस्य त्वा राध्यासं शीर्ष्णे मखाय त्वा मखस्य त्वा राध्यासं तथा यूयमोजस्विनः स्थ ॥६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मनुष्या धर्म्याणि कर्माणि कुर्वन्ति, ते सर्वेषु शिरोवद्भवन्ति ॥६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे जे लोक धर्मयुक्त कार्य करतात ते सर्वांचे शिरोमणी असतात.