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इय॒त्यग्र॑ऽआसीन्म॒खस्य॑ ते॒ऽद्य शिरो॑ राध्यासं देव॒यज॑ने पृथि॒व्याः। म॒खाय॑ त्वा म॒खस्य॑ त्वा शीर्ष्णे ॥५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इय॑ति। अग्रे॑। आ॒सी॒त्। म॒खस्य॑। ते॒। अ॒द्य। शिरः॑। रा॒ध्या॒स॒म्। दे॒व॒यज॑न॒ इति॑ देव॒ऽयज॑ने। पृ॒थि॒व्याः ॥ म॒खाय॑। त्वा॒। म॒खस्य॑। त्वा॒। शी॒र्ष्णे ॥५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:37» मन्त्र:5


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब अध्यापक विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! मैं (अग्रे) पहिले (मखाय) सत्काररूप यज्ञ के लिये (त्वा) तुझको (मखस्य) सङ्गतिकरण की (शीर्ष्णे) उत्तमता के लिये (त्वा) तुझको (राध्यासम्) सिद्ध करूँ, जिस (ते) आपके (मखस्य) यज्ञ का (शिरः) उत्तम गुण (आसीत्) है, उस आपको (अद्य) आज (पृथिव्याः) भूमि के बीच (इयति) इतने (देवयजने) विद्वानों के पूजने में सम्यक् सिद्ध होऊँ ॥५ ॥
भावार्थभाषाः - वे ही अध्यापक श्रेष्ठ हैं जो पृथिवी के बीच सबको उत्तम शिक्षा और विद्या से युक्त करने को समर्थ हैं ॥५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाध्यापकविषयमाह ॥

अन्वय:

(इयति) एतावति (अग्रे) (आसीत्) अस्ति (मखस्य) यज्ञस्य (ते) तव (अद्य) (शिरः) उत्तमगुणम् (राध्यासम्) (देवयजने) विदुषां पूजने (पृथिव्याः) भूमेः (मखाय) सत्काराख्याय (त्वा) त्वाम् (मखस्य) सङ्गतिकरणस्य (त्वा) (शीर्ष्णे) उत्तमत्वाय ॥५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन्नहमग्रे मखाय त्वा मखस्य शीर्ष्णे त्वा राध्यासम्, यस्य ते मखस्य शिर आसीत्, तं त्वामद्य पृथिव्या इयति देवयजने राध्यासम् ॥५ ॥
भावार्थभाषाः - त एवाध्यापकाः श्रेष्ठाः सन्ति ये पृथिव्या मध्ये सर्वान् सुशिक्षाविद्यायुक्तान् कर्त्तुं शक्नुवन्ति ॥५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे या पृथ्वीवर सर्वात उत्तम शिक्षण देऊन विद्यायुक्त करतात तेच अध्यापक श्रेष्ठ असतात.