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पि॒ता नो॑ऽसि पि॒ता नो॑ बोधि॒ नम॑स्तेऽअस्तु॒ मा मा॑ हिꣳसीः। त्वष्टृ॑मन्तस्त्वा सपेम पु॒त्रान् प॒शून् मयि॑ धेहि प्र॒जाम॒स्मासु॑ धे॒ह्यरि॑ष्टा॒हꣳ स॒ह प॑त्या भूयासम् ॥२० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पि॒ता। नः॒। अ॒सि॒। पि॒ता। नः॒। बो॒धि॒। नमः॑। ते॒। अ॒स्तु॒। मा। मा॒। हिं॒सीः॒ ॥ त्वष्टृ॑मन्त॒ इति॒ त्वष्टृ॑ऽमन्तः। त्वा॒। स॒पे॒म॒। पु॒त्रान्। प॒शून्। मयि॑। धे॒हि॒। प्र॒जामिति॑ प्र॒ऽजाम्। अ॒स्मासु॑। धे॒हि॒। अरि॑ष्टा। अ॒हम्। स॒हप॒त्येति॑ स॒हऽप॑त्या। भू॒या॒स॒म् ॥२० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:37» मन्त्र:20


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर ! आप (नः) हमारे (पिता) पिता के समान (असि) हैं, (पिता) राजा के तुल्य रक्षक हुए (नः) हमको (बोधि) बोध कराइये (ते) आपके लिये (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे, आप (मा) मुझको (मा, हिंसीः) मत हिंसायुक्त कीजिये (त्वष्टृमन्तः) बहुत स्वच्छ प्रकाशरूप पदार्थोंवाले हम (त्वा) आप से (सपेम) सम्बन्ध करें। आप (पुत्रान्) पवित्र गुण-कर्म-स्वभाववाले सन्तानों को तथा (पशून्) गौ आदि पशुओं को (मयि) मुझमें (धेहि) धारण कीजिये तथा (अस्मासु) हममें (प्रजाम्) प्रजा को (धेहि) धारण कीजिये, जिससे (अहम्) मैं (अरिष्टा) अहिंसित हुई (सहपत्या) पति के साथ (भूयासम्) होऊँ ॥२० ॥
भावार्थभाषाः - हे जगदीश्वर ! आप हमारे पिता, स्वामी, बन्धु, मित्र और रक्षक हैं, इससे आपकी हम निरन्तर उपासना करते हैं। हे स्त्रियो ! तुम परमेश्वर ही की उपासना नित्य किया करो, जिससे सब सुखों को प्राप्त होओ ॥२० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(पिता) जनक इव (नः) अस्माकम् (असि) (पिता) राजेव पालकः (नः) अस्मान् (बोधि) बोधय (नमः) (ते) तुभ्यम् (अस्तु) (मा) निषेधे (मा) माम् (हिंसीः) हिंसया युक्तं कुर्य्याः (त्वष्टृमन्तः) बहवस्त्वष्टारः प्रकाशात्मानः पदार्था विद्यन्ते येषु ते (त्वा) त्वाम् (सपेम) सम्बन्धं कुर्य्याम (पुत्रान्) पवित्रगुणकर्मस्वभावान् (पशून्) गवादीन् (मयि) (धेहि) (प्रजाम्) राष्ट्रम् (अस्मासु) (धेहि) (अरिष्टा) अहिंसिता (अहम्) (सहपत्या) स्वामिना सह (भूयासम्) ॥२० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर ! त्वं नः पिताऽसि पिता सन्नोऽस्मान् बोधि ते नमस्तु त्वं मा मा हिंसीस्त्वष्टृमन्तो वयं त्वा सपेम। त्वं पुत्रान् पशून् मयि धेहि, अस्मासु प्रजां धेहि, यतोहमरिष्टा सती सहपत्या भूयासम् ॥२० ॥
भावार्थभाषाः - हे जगदीश्वर ! भवान् नोऽस्माकं पिता स्वामी बन्धुर्मित्रो रक्षकोऽसि, तस्मात् त्वां वयं सततमुपास्महे। हे स्त्रियो ! यूयं परमात्मन एवोपासनां नित्यं कुरुत, यतः सर्वाणि सुखानि प्राप्नुत ॥२० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे जगदीश्वरा ! तू आमचा पिता, स्वामी, बंधू, मित्र, रक्षक आहेस म्हणून आम्ही सतत तुझी उपासना करतो. हे स्रियांनो ! परमेश्वराचीच सतत उपासना करा. ज्यामुळे सर्व सुख प्राप्त होईल.