वांछित मन्त्र चुनें

अग्न॒ऽआयू॑षि पवस॒ऽ आ सु॒वोर्ज॒मिषं॑ च नः। आ॒रे बा॑धस्व दु॒च्छुना॑म् ॥१६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑। आयू॑षि। प॒व॒से॒। आ। सु॒व। ऊर्ज॑म्। इष॑म्। च॒। नः॒ ॥ आ॒रे। बा॒ध॒स्व॒। दु॒च्छुना॑म् ॥१६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:35» मन्त्र:16


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कौन मनुष्य दीर्घ अवस्थावाले होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) परमेश्वर वा विद्वन् ! आप (आयूंषि) अन्नादि पदार्थों वा अवस्थाओं को (पवसे) पवित्र करते (नः) हमारे लिये (ऊर्जम्) बल (च) और (इषम्) विज्ञान को (आ, सुव) अच्छे प्रकार उत्पन्न कीजिये तथा (दुच्छुनाम्) कुत्तों के तुल्य दुष्ट हिंसक प्राणियों को (आरे) दूर वा समीप में (बाधस्व) ताड़ना विशेष दीजिये ॥१६ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य दुष्टों का आचरण और सङ्ग छोड़ के परमेश्वर और आप्त सत्यवादी विद्वान् की सेवा करते हैं, वे धन-धान्य से युक्त हुए दीर्घ अवस्थावाले होते हैं ॥१६ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

के जना दीर्घायुषो भवन्तीत्याह ॥

अन्वय:

(अग्ने) परमेश्वर विद्वन् वा (आयूंषि) अन्नादीनि जीवनानि वा। आयुरित्यन्ननामसु पठितम् ॥ (निघं०२.१) (पवसे) पवित्रीकरोषि (आ) (सुव) जनय (ऊर्जम्) बलम् (इषम्) विज्ञानम् (च) (नः) अस्मभ्यम् (आरे) दूरे निकटे वा (बाधस्व) (दुच्छुनाम्) दुष्टाः श्वान इव वर्त्तमानास्तान् हिंस्यान् प्राणिनः। अत्र कर्मणि षष्ठी ॥१६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! त्वमायूंषि पवसे न ऊर्जमिषं चासुव दुच्छुनामारे बाधस्व ॥१६ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या दुष्टाचरणदुष्टसङ्गौ विहाय परमेश्वराप्तयोः सेवां कुर्वन्ति, ते धनधान्ययुक्ता सन्तो दीर्घायुषो भवन्ति ॥१६ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे दुष्ट आचरण व दुष्टांची संगत सोडतात व परमेश्वर, आप्त, सत्यवादी विद्वानांची सेवा करतात ती धनधान्यांनी युक्त होऊन दीर्घायुषी बनतात.