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उत्ति॑ष्ठ ब्रह्मणस्पते देव॒यन्त॑स्त्वेमहे। उप॒ प्र य॑न्तु म॒रुतः॑ सु॒दान॑व॒ऽइन्द्र॑ प्रा॒शूर्भ॑वा॒ सचा॑ ॥५६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उत्। ति॒ष्ठ॒। ब्र॒ह्म॒णः॒। प॒ते॒। दे॒व॒यन्त॒ इति॑ देव॒ऽयन्तः॑। त्वा॒। ई॒म॒हे॒ ॥ उप॑। प्र। य॒न्तु॒। म॒रुतः॑। सु॒दा॑नव॒ इति॑ सु॒ऽदान॑वः। इन्द्र॑। प्रा॒शूः। भ॒व॒। सचा॑ ॥५६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:34» मन्त्र:56


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वान् पुरुष क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (ब्रह्मणः) धन के (पते) रक्षक (इन्द्र) ऐश्वर्यकारक विद्वन् ! (देवयन्तः) दिव्य विद्वानों की कामना करते हुए हम लोग जिस (त्वा) आपकी (ईमहे) याचना करते हैं, जिस आपको (सुदानवः) सुन्दर दान देनेवाले (मरुतः) मनुष्य (उप, प्र, यन्तु) समीप से प्रयत्न के साथ प्राप्त हों सो आप (उत्, तिष्ठ) उठिये और (सचा) सत्य के सम्बन्ध से (प्राशूः) उत्तम भोग करनेहारे (भव) हूजिये ॥५६ ॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् ! जो लोग विद्या की कामना करते हुए आपका आश्रय लेवें, उनके अर्थ विद्या देने के लिये आप उद्यत हूजिये ॥५६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वान् किं कुर्यादित्याह ॥

अन्वय:

(उत्) (तिष्ठ) (ब्रह्मणः) धनस्य (पते) पालक ! (देवयन्तः) कामयमानाः (त्वा) त्वाम् (ईमहे) याचामहे (उप) (प्र) (यन्तु) प्राप्नुवन्तु (मरुतः) मनुष्याः (सुदानवः) शोभनदानाः) (इन्द्र) ऐश्वर्यकारक ! (प्राशूः) यः प्राश्नाति सः (भव) अत्र द्व्यचोऽतस्तिङः [अ०६.३.१३५] इति दीर्घः (सचा) सत्यसमवायेन ॥५६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे ब्रह्मणस्पते इन्द्र ! देवयन्तो वयं यन्त्वेमहे यन्त्वा सुदानवो मरुत उप प्रयन्तु। स त्वमुत्तिष्ठ सचा प्राशूर्भव ॥५६ ॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् ! ये विद्यां कामयमानास्त्वामुपतिष्ठेयुस्तेभ्यो विद्यादानाय भवानुत्तिष्ठतूद्युक्तो भवतु ॥५६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो ! जे लोक विद्येची कामना करून तुमचा आमचा आश्रय घेतात त्यांना विद्या देण्यात तुम्ही तत्पर व्हा.