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त्वमि॒माऽओष॑धीः सोम॒ विश्वा॒स्त्वम॒पोऽअ॑जनय॒स्त्वं गाः। त्वमा त॑तन्थो॒र्व᳕न्तरि॑क्षं॒ त्वं ज्योति॑षा॒ वि तमो॑ ववर्थ ॥२२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम्। इ॒माः। ओष॑धीः। सो॒म॒। विश्वाः॑। त्वम्। अ॒पः। अ॒ज॒न॒यः॒। त्वम्। गाः ॥ त्वम्। आ। त॒त॒न्थ॒। उ॒रु। अ॒न्तरि॑क्षम्। त्वम्। ज्योति॑षा। वि। तमः॑। ववर्थ॒ ॥२२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:34» मन्त्र:22


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सोम) उत्तम सोमवल्ली ओषधियों के तुल्य रोगनाशक राजन् ! (त्वम्) आप (इमाः) इन (विश्वाः) सब (ओषधीः) सोम आदि ओषधियों को (त्वम्) आप सूर्य्य के तुल्य (अपः) जलों वा कर्म को और (त्वम्) आप (गाः) पृथिवी वा गौओं को (अजनयः) उत्पन्न वा प्रकट कीजिये। (त्वम्) आप सूर्य्य के समान (उरु) बहुत (अन्तरिक्षम्) अवकाश को (आ, ततन्थ) विस्तृत करते तथा (त्वम्) आप सूर्य्य जैसे (ज्योतिषा) प्रकाश से (तमः) अन्धकार को दबाता। वैसे न्याय से अन्याय को (वि, ववर्थ) आच्छादित वा निवृत्त कीजिये, सो आप हमको माननीय हैं ॥२२ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य जैसे ओषधि रोगों को वैसे दुःखों को हर लेते हैं, प्राणों के तुल्य बलों को प्रकट करते तथा जो राजपुरुष सूर्य्य रात्रि को जैसे वैसे अधर्म और अविद्या के अन्धकार को निवृत्त करते हैं, वे जगत् को पूज्य क्यों नहीं हों? ॥२२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(त्वम्) (इमाः) (ओषधीः) सोमाद्याः (सोम) सोमवल्लीव सर्वरोगविनाशक ! (विश्वाः) सर्वाः (त्वम्) (अपः) जलानि कर्म वा (अजनयः) जनयेः (त्वम्) (गाः) पृथिवीर्धेनूर्वा (त्वम्) (आ) (ततन्थ) तनोषि (उरु) बहु (अन्तरिक्षम्) जलमाकाशं वा (त्वम्) (ज्योतिषा) प्रकाशेन (वि) (तमः) अन्धकारं रात्रिम् (ववर्थ) वृणोषि ॥२२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे सोम राजन् ! यस्त्वं विश्वा इमा ओषधीस्त्वं सूर्य इवाऽपस्त्वं गाश्चाऽजनयस्त्वं सूर्य्य उर्वन्तरिक्षमा ततन्थ, सविता ज्योतिषा तम इव न्यायेनाऽन्यायं विववर्थ, स त्वस्माभिर्माननीयोऽसि ॥२२ ॥
भावार्थभाषाः - ये जना ओषध्यो रोगानिव दुःखानि हरन्ति, प्राणा इव बलं जनयन्ति, ये राजजनाः सूर्य्यो रात्रिमिवाऽधर्माऽविद्याऽन्धकारं निवर्त्तयन्ति, ते जगत्पूज्याः कुतो न स्युः ॥२२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्याप्रमाणे औषध रोग नाहीसे करते त्याप्रमाणे जी माणसे दुःख दूर करतात व प्राणाप्रमाणे बलवान बनून सूर्य जसा अंधःकार नष्ट करतो तसे जे अविद्यारूपी अंधःकार नष्ट करतात तेच राजपुरुष व ती माणसे जगात पूज्य ठरतात.