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अपा॑धमद॒भिश॑स्तीरशस्ति॒हाथेन्द्रो॑ द्यु॒म्न्याभ॑वत्। दे॒वास्त॑ऽइन्द्र स॒ख्याय॑ येमिरे॒ बृह॑द्भानो॒ मरु॑द्गण ॥९५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अप॑। अ॒ध॒म॒त्। अ॒भिश॑स्ती॒रित्य॒भिऽश॑स्तीः। अ॒श॒स्ति॒हेत्य॑शस्ति॒ऽहा। अथ। इन्द्रः॑। द्यु॒म्नी। आ। अ॒भ॒व॒त् ॥ दे॒वाः। ते॒। इ॒न्द्र॒। स॒ख्याय॑। ये॒मि॒रे॒। बृह॑द्भानो॒ इति॒ बृह॑त्ऽभानो। मरु॑द्ग॒णेति॒ मरु॑त्ऽगण ॥९५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:95


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब कौन मनुष्य दुःखनिवारण में समर्थ हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (बृहद्भानो) महान् किरणों के तुल्य प्रकाशित कीर्तिवाले (मरुद्गण) मनुष्यों वा पवनों के समूह से कार्य्यसाधक (इन्द्र) परमैश्वर्य्य के देनेवाले सभापति राजा (देवाः) विद्वान् लोग (ते) आपकी (सख्याय) मित्रता के अर्थ (येमिरे) संयम करते हैं। (अथ) और (द्युम्नी) बहुत प्रशंसारूप धन से युक्त (इन्द्रः) परमैश्वर्यवाले आप (अभिशस्तीः) सबसे हिंसाओ को (अप, आ, अधमत्) दूर धमकाते हो (अशस्तिहा) दुष्टों के नाशक (अभवत्) हूजिये ॥९५ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य धार्मिक न्यायधीशों वा धनाढ्यों से मित्रता करते हैं, वे यशस्वी होकर सब दुःखनिवारण के लिये सूर्य के तुल्य होते हैं ॥९५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ के जना दुःखनिवारणसमर्थाः सन्तीत्याह ॥

अन्वय:

(अप) दूरीकरणे (अधमत्) धमति (अभिशस्तीः) अभितो हिंसाः (अशस्तिहा) अप्रशस्तानां दुष्टानां हन्ता (अथ) (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् सभापती राजा (द्युम्नी) बहुप्रशंसाधनयुक्तः (आ) (अभवत्) भवतु (देवाः) विद्वांसः (ते) तव (इन्द्र) परमैश्वर्यप्रद सभापते राजन् ! (सख्याय) मित्रत्वाय (येमिरे) संयमं कुर्वन्ति (बृहद्भानो) बृहन्तो भानवः किरणा इव कीर्त्तयो यस्य तत्सम्बुद्धौ (मरुद्गण) मरुतां मनुष्याणां वायूनां वा गणः समूहो यस्य तत्सबुद्धौ ॥९५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये बृहद्भानो मरुद्गगण इन्द्र ! देवास्ते सख्याय येमिरेऽथ द्युम्नीन्द्रो भवानभिशस्तीरपाऽऽधमदशस्तिहाऽभवद् भवतु ॥९५ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या धार्मिकाणां न्यायधीशानां धनाढ्यानां वा मित्रतां कुर्वन्ति, ते यशस्विनो भूत्वा सर्वेषां दुःखनिवारणाय सूर्यवद्भवन्ति ॥९५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे धार्मिक, न्यायाधीश व धनाढ्य लोकांशी मैत्री करतात ती यशस्वी होऊन दुःखरूपी अंधःकार नष्ट होण्यासाठी सूर्याप्रमाणे तळपतात.