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उ॒क्थेभि॑र्वृत्र॒हन्त॑मा॒ या म॑न्दा॒ना चि॒दा गि॒रा। आ॒ङ्गू॒षैरा॒विवा॑सतः ॥७६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒क्थेभिः॑। वृ॒त्र॒हन्त॒मेति॑ वृत्र॒हन्ऽत॑मा। या। मन्दा॒ना। चि॒त्। आ। गि॒रा ॥ आ॒ङ्गूषैः। आ॒विवा॑सत॒ इत्या॒विवा॑सतः ॥७६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:76


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कैसे मनुष्य सत्कार के योग्य हों, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (या) जो (मन्दाना) आनन्द देनेवाले (वृत्रहन्तमा) धर्म का निरोध करनेहारे पापियों के नाशक सभा सेनापति के (चित्) समान (गिरा) वाणी (आङ्गूषैः) अच्छे घोष और (उक्थेभिः) प्रशंसा योग्य स्तुतियों के साधक वेद के भागरूप मन्त्रों से शिल्प विज्ञान का (आविवासतः) अच्छे प्रकार सेवन करते हैं, उन अध्यापक उपदेशकों की मनुष्यों को (आ) अच्छे प्रकार सेवा करनी चाहिये ॥७६ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सभा सेनाध्यक्ष के तुल्य विद्यादि कार्य्यों के साधक सुन्दर उपदेशों से सबको विद्वान् करते हुए प्रवृत्त हों, वे ही सबको सत्कार करने योग्य हों ॥७६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कीदृशा जनाः सत्कारार्हाः स्युरित्याह ॥

अन्वय:

(उक्थेभिः) प्रशंसनीयैः स्तुतिसाधकैर्वेदविभागैर्मन्त्रैः (वृत्रहन्तमा) अतिशयेन वृत्राणामावरकाणां पापिनां हन्तारौ (या) यौ (मन्दाना) आनन्दप्रदौ। अत्र सर्वत्र विभक्तेर्डादेशः। (चित्) इव (आ) समन्तात् (गिरा) वाण्या (आङ्गूषैः) समन्ताद् घोषैः (आविवासतः) समन्तात् परिचरतः ॥७६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - या मन्दाना वृत्रहन्तमा सभासेनाध्यक्षौ चिदिव गिरा आङ्गूषैरुक्थेभिश्च शिल्पविज्ञानमाविवासत-स्तावध्यापकोपदेशकौ मनुष्यैरासेवनीयौ ॥७६ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः सभासेनाध्यक्षवद्विद्यादिकार्यसाधकाः सूपदेशैः सर्वान् विदुषः संपादयन्तः प्रवृत्ताः स्युस्त एव सर्वैः सत्कर्त्तव्या भवेयुः ॥७६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे सभा व सेनाध्यक्षाप्रमाणे विद्या इत्यादी कार्यात रत असतात व चांगल्या उपदेशांनी सर्वांना विद्वान बनवितात त्यांचा सर्वांनी सत्कार करावा.