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उ॒ग्रा वि॑घ॒निना॒ मृध॑ऽइन्द्रा॒ग्नी ह॑वामहे। ता नो॑ मृडातऽई॒दृशे॑ ॥६१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उ॒ग्रा। विघ॒निनेति॑ विऽघ॒निना॑। मृधः॑। इ॒न्द्रा॒ग्नीऽइती॑न्द्रा॒ग्नी। ह॒वा॒म॒हे॒ ॥ ता। नः॒। मृ॒डा॒तः॒। ई॒दृशे॑ ॥६१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:61


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब सभा-सेनापति क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! हम जिन (उग्रा) अधिक बली तेजस्वी स्वभाववाले (मृधः) और हिंसकों को (विघनिना) विशेष कर मारनेहारे (इन्द्राग्नी) सभा-सेनापति को (हवामहे) बुलाते हैं (ता) वे (ईदृशे) इस प्रकार के संग्रामादि व्यवहार में (नः) हम लोगों को (मृडातः) सुखी करते हैं ॥६१ ॥
भावार्थभाषाः - जो सभा और सेना के अध्यक्ष पक्षपात को छोड़ बल को बढ़ा के शत्रुओं को जीतते हैं, वे सबको सुख देनेवाले होते हैं ॥६१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

सभासेनेशौ किं कुर्य्यातामित्याह ॥

अन्वय:

(उग्रा) उग्रबलौ तेजस्विस्वभावौ। अत्र विभक्तेर्लुक् संहितायाम् [अ०६.३.११४] इति दीर्घः। (विघनिना) विशेषेण हन्तारौ (मृधः) हिंसकान् (इन्द्राग्नी) सभासेनाधीशौ (हवामहे) आह्वयामः (ता) तौ (नः) अस्मान् (मृडातः) सुखयतः (ईदृशे) ईदृग्लक्षणे सङ्ग्रामादिव्यवहारे ॥६१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! वयं यावुग्रा मृधो विघनिनेन्द्राग्नी हवामहे ता ईदृशे नोऽस्मान् मृडातः ॥६१ ॥
भावार्थभाषाः - यौ सभासेनाध्यक्षौ पक्षपातं विहाय बलं वर्द्धयित्वा शत्रून् विजयेते, तौ सर्वेषां सुखप्रदौ भवतः ॥६१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी सभा व सेनापती भेदभाव नष्ट करून आपले बल वाढवितात आणि शत्रूंना जिंकतात ते सर्वांना सुख देतात.