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बट् सू॑र्य्य॒ श्रव॑सा म॒हाँ२ऽअ॑सि स॒त्रा दे॑व म॒हाँ२ऽअ॑सि। म॒ह्ना दे॒वाना॑मसु॒र्य्यः᳖ पु॒रोहि॑तो वि॒भु ज्योति॒रदा॑भ्यम् ॥४० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

बट्। सू॒र्य्य॒। श्रव॑सा। म॒हान्। अ॒सि॒। स॒त्रा। दे॒व। म॒हान्। अ॒सि॒ ॥ म॒ह्ना। दे॒वाना॑म्। अ॒सु॒र्य्यः᳖। पु॒रोहि॑त॒ इति॑ पु॒रःऽहि॑तः। विभ्विति॑ विऽभु। ज्योतिः॑। अदा॑भ्यम् ॥४० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:40


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (बट्) सत्य (सूर्य) सूर्य के तुल्य सब के प्रकाशक ! जिससे आप (श्रवसा) यश वा धन से (महान्) बड़े (असि) हो। हे (देव) उत्तम सुख के दाता ! (सत्रा) सत्य के साथ (महान्) बड़े (असि) हो। जिससे आप (देवानाम्) पृथिवी आदि वा विद्वानों के (पुरोहितः) प्रथम से हितकारी (मह्ना) महत्त्व से (असुर्य्यः) प्राणों के लिये हितैषी हुए (अदाभ्यम्) आस्तिकता से रक्षा करने योग्य (विभु) व्यापक (ज्योतिः) प्रकाशस्वरूप हैं, इससे सत्कार के योग्य हैं ॥४० ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिस ईश्वर ने सबकी पालना के लिये अन्नादि को उत्पन्न करनेवाली भूमि, मेघ और प्रकाश करनेवाला सूर्य रचा है, वही परमेश्वर उपासना करने योग्य है ॥४० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(बट्) सत्यम् (सूर्य) सवितृवत्सर्वप्रकाशक ! (श्रवसा) यशसा धनेन वा (महान्) (असि) (सत्रा) सत्येन (देव) दिव्यसुखप्रद ! (महान्) (असि) (मह्ना) महत्त्वेन (देवानाम्) पृथिव्यादीनां विदुषां वा (असुर्य्यः) असुभ्यः प्राणेभ्यो हितः (पुरोहितः) पुरस्ताद्धितकारी (विभु) व्यापकम् (ज्योतिः) प्रकाशकं स्वरूपम् (अदाभ्यम्) अहिंसनीयम् ॥४० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे बट् सूर्य्य ! यतस्त्वं श्रवसा महानसि। हे देव सत्रा महानसि यतस्त्वं देवानां पुरोहितो मह्नाऽसुर्य्यः सन्नदाभ्यं विभु ज्योतिः स्वरूपोऽसि तस्मात् सत्कर्त्तव्योऽसि ॥४० ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! येनेश्वरेण सर्वेषां पालनायान्नाद्युत्पादिका भूमिर्मेघप्रकाशकारी सूर्य्यो निर्मितः, स एव परमेश्वर उपासितुं योग्योऽस्ति ॥४० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! ज्या ईश्वराने सर्वांचे पालन करण्यासाठी अन्न वगैरे उत्पन्न करून भूमी व मेघ उत्पन्न करणारा सूर्य निर्माण केलेला आहे तोच परमेश्वर उपासना करण्यायोग्य आहे.