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आ॒तिष्ठ॑न्तं॒ परि॒ विश्वे॑ऽअभूष॒ञ्छ्रियो॒ वसा॑नश्चरति॒ स्वरो॑चिः। म॒हत्तद् वृष्णो॒ऽअसु॑रस्य॒ नामा वि॒श्वरू॑पोऽअ॒मृता॑नि तस्थौ ॥२२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ॒तिष्ठ॑न्त॒मित्या॒ऽतिष्ठ॑न्तम्। परि॑। विश्वे॑। अ॒भू॒ष॒न्। श्रियः॑। वसा॑नः। च॒र॒ति॒। स्वरो॑चि॒रिति॒ स्वऽरो॑चिः ॥ म॒हत्। तत्। वृष्णः॑। असु॑रस्य। नाम॑। आ। वि॒श्वऽरू॑प॒ इति॒ वि॒श्वऽरू॑पः। अ॒मृता॑नि। त॒स्थौ॒ ॥२२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:33» मन्त्र:22


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्युत् अग्नि कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् लोगो ! (विश्वे) सब आप जैसे (श्रियः) धनों वा शोभाओं को (वसानः) धारण करता हुआ (स्वरोचिः) स्वयमेव दीप्तिवाला (विश्वरूपः) सब पदार्थों में उन-उन के रूप से व्याप्त अग्नि (चरति) विचरता और (अमृतानि) नाशरहित वस्तुओं में (आ, तस्थौ) स्थित है, वैसे इस (आतिष्ठन्तम्) अच्छे प्रकार स्थिर अग्नि को (परि, अभूषन्) सब ओर से शोभित कीजिये। जो (वृष्णः) वर्षा करनेहारे (असुरस्य) हिंसक इस बिजुलीरूप अग्नि का (महत्) बड़ा (तत्) परोक्ष (नाम) नाम है, उससे सब कार्य्यों को शोभित करो ॥२२ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जिस कारण यह विद्युद्रूप अग्नि सब पदार्थों में स्थित हुआ भी किसी को प्रकाशित नहीं करता, इससे इसकी असुर संज्ञा है। जो इस विद्युत् विद्या को जानते हैं, वे सब ओर से सुभूषित होते हैं ॥२२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्युदग्निः कीदृश इत्याह ॥

अन्वय:

(आतिष्ठन्तम्) समन्तात् स्थिरम् (परि) सर्वतः (विश्वे) सर्वे (अभूषन्) भूषयेयुः (श्रियः) धनानि शोभा वा (वसानः) स्वीकुर्वाणः (चरति) (स्वरोचिः) स्वकीया रोचिर्दीप्तिर्यस्य सः (महत्) (तत्) (वृष्णः) वर्षकस्य (असुरस्य) हिंसकस्य विद्युदाख्यस्याग्नेः (नाम) संज्ञा (आ) (विश्वरूपः) विश्वं समग्रं रूपं यस्य सः (अमृतानि) नाशरहितानि वस्तूनि। अत्र सप्तम्यर्थे षष्ठी। (तस्थौ) तिष्ठति ॥२२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वांसो ! विश्वे भवन्तो यथा श्रियो वसानः स्वरोचिर्विश्वरूपोऽग्निश्चरत्यमृतान्यातस्थौ तथैतमातिष्ठन्तं पर्यभूषन्। यद्वृष्णोऽसुरस्यास्य महत्तन्नामास्ति तेन सर्वाणि कार्य्याण्यलङ् कुरुत ॥२२ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यतोऽयं विद्युदाख्योऽग्निः सर्वपदार्थस्थोऽपि न किञ्चित् प्रकाशयति, तस्मादस्यासुरेति नाम। य एतद्विद्यां जानन्ति ते सर्वतः सुभूषिता भवन्ति ॥२२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. विद्युतरूपी अग्नी सर्व पदार्थांमध्ये स्थित असतो; परंतु तो प्रकट होत नाही. म्हणून त्याला असुर म्हटले जाते. जे लोक ही विद्युत विद्या जाणतात ते प्रसिद्ध होतात.