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ततो॑ वि॒राड॑जायत वि॒राजो॒ऽअधि॒ पूरु॑षः। स जा॒तोऽअत्य॑रिच्यत प॒श्चाद् भूमि॒मथो॑ पु॒रः ॥५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ततः॑। वि॒राडिति॑ वि॒ऽराट्। अ॒जा॒य॒त॒। वि॒राज॒ इति॑ वि॒ऽराजः॑। अधि॑। पूरु॑षः। पुरु॑ष॒ऽइति॑ पुरु॑षः ॥ सः। जा॒तः। अति॑। अ॒रि॒च्य॒त॒। प॒श्चात्। भूमि॑म्। अथो॒ऽइत्यथो॑। पु॒रः ॥५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:31» मन्त्र:5


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (ततः) उस सनातन पूर्ण परमात्मा से (विराट्) विविध प्रकार के पदार्थों से प्रकाशमान विराट् ब्रह्माण्डरूप संसार (अजायत) उत्पन्न होता (विराजः) विराट् संसार के (अधि) ऊपर अधिष्ठाता (पूरुषः) परिपूर्ण परमात्मा होता है, (अथो) इसके अनन्तर (सः) वह पुरुष (पुरः) पहिले से (जातः) प्रसिद्ध हुआ (अति, अरिच्यत) जगत् से अतिरिक्त होता है (पश्चात्) पीछे (भूमिम्) पृथिवी को उत्पन्न करता है, उसको जानो ॥५ ॥
भावार्थभाषाः - परमेश्वर ही से सब समष्टिरूप जगत् उत्पन्न होता है, वह उस जगत् से पृथक् उसमें व्याप्त भी हुआ उसके दोषों से लिप्त न होके इस सबका अधिष्ठाता है। इस प्रकार सामान्य कर जगत् की रचना कह के विशेष कर भूमि आदि की रचना को क्रम से कहते हैं ॥५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(ततः) तस्मात् पूर्णादादिपुरुषात् (विराट्) विविधैः पदार्थै राजते प्रकाशते स विराड् ब्रह्माण्डरूपः (अजायत) जायते (विराजः) (अधि) उपरि अधिष्ठाता (पूरुषः) परिपूर्णः परमात्मा (सः) (जातः) प्रादुर्भूतः (अति) (अरिच्यत) अतिरिक्तो भवति (पश्चात्) (भूमिम्) (अथो) (पुरः) पुरस्ताद्वर्त्तमानः ॥५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यास्ततो विराडजायत विराजो अधि पूरुष अथो स पुरो जातोऽत्यरिच्यत पश्चाद् भूमिं जनयति तं विजानीत ॥५ ॥
भावार्थभाषाः - परमेश्वरादेव सर्वं समष्टिरूपं जगज्जायते स च तस्मात् पृथग्भूतो व्याप्तोऽपि तत्कल्मषालिप्तोऽस्य सर्वस्याधिष्ठाता भवति। एवं सामान्येन जगन्निर्माणमुक्त्वा विशेषतया भूम्यादिनिर्माणं क्रमेणोच्यते ॥५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - त्या पूर्ण सनातन परमेश्वरापासून नाना प्रकारचे पदार्थ प्रकाशित होतात व ब्रह्मांडरूपी जग उत्पन्न होते. त्या जगापासून परमेश्वर पृथकही असतो व त्यात व्याप्तही असतो. जगातील दोषात तो लिप्त नसतो; पण सर्वांचा अधिष्ठाता असतो. याप्रमाणे तो पुरुष (परमेश्वर) सृष्टी रचनेपूर्वीही होता व नंतर भूमी इत्यादींनाही उत्पन्न करतो.