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नाभ्या॑ऽआसीद॒न्तरि॑क्षꣳ शी॒र्ष्णो द्यौः सम॑वर्त्तत। प॒द्भ्यां भूमि॒र्दिशः॒ श्रोत्रा॒त्तथा॑ लो॒काँ२ ॥ऽअ॑कल्पयन् ॥१३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नाभ्याः॑। आ॒सी॒त्। अ॒न्तरि॑क्षम्। शी॒र्ष्णः। द्यौः। सम्। अ॒व॒र्त्त॒त॒ ॥ प॒द्भ्यामिति॑ प॒त्ऽभ्याम्। भूमिः॑। दिशः॑। श्रोत्रा॑त्। तथा॑। लो॒कान् ॥ अ॒क॒ल्प॒य॒न् ॥१३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:31» मन्त्र:13


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे इस पुरुष परमेश्वर के (नाभ्याः) अवकाशरूप मध्यम सामर्थ्य से (अन्तरिक्षम्) लोकों के बीच का आकाश (आसीत्) हुआ (शीर्ष्णः) शिर के तुल्य उत्तम सामर्थ्य से (द्यौः) प्रकाशयुक्त लोक (पद्भ्याम्) पृथिवी के कारणरूप सामर्थ्य से (भूमिः) पृथिवी (सम्, अवर्त्तत) सम्यक् वर्त्तमान हुई और (श्रोत्रात्) अवकाशरूप सामर्थ्य से (दिशः) पूर्व आदि दिशाओं की (अकल्पयन्) कल्पना करते हैं, (तथा) वैसे ही ईश्वर के सामर्थ्य से अन्य (लोकान्) लोकों को उत्पन्न हुए जानो ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो-जो इस सृष्टि में कार्यरूप वस्तु है, वह-वह सब विराड्रूप कार्यकारण का अवयवरूप है, ऐसा जानना चाहिये ॥१३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(नाभ्याः) अवकाशमयान्मध्यवर्त्तिसामर्थ्यात् (आसीत्) अस्ति (अन्तरिक्षम्) मध्यवर्त्याकाशम् (शीर्ष्णः) शिर इवोत्तमसामर्थ्यात् (द्यौः) प्रकाशयुक्तलोकः (सम्) (अवर्त्तत) (पद्भ्याम्) पृथिवीकारणरूपसामर्थ्यात् (भूमिः) (दिशः) पूर्वाद्याः (श्रोत्रात्) अवकाशमयात् (तथा) तेनैव प्रकारेण (लोकान्) (अकल्पयन्) कथयन्ति ॥१३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथाऽस्य नाभ्या अन्तरिक्षमासीच्छीर्ष्णो द्यौः पद्भ्यां भूमिः समवर्त्तत श्रोत्राद्दिशोऽकल्पयँस्तथाऽन्यांल्लोकानुत्पन्नान् विजानीत ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! यद्यदत्र सृष्टौ कार्य्यभूतं वस्तु वर्त्तते तत्तत्सर्वं विराडाख्यस्य कार्यकारणस्याऽवयवरूपं वर्त्तत इति वेद्यम् ॥१३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! या सृष्टीमध्ये ज्या ज्या कार्यरूप वस्तू आहेत, त्या सर्व त्या विराटरूप कार्य कारणाचे अवयव आहेत हे जाणा.