वांछित मन्त्र चुनें

न॒र्माय॑ पुँश्च॒लू हसा॑य॒ कारिं॒ याद॑से शाब॒ल्यां ग्रा॑म॒ण्यं᳕ गण॑कमभि॒क्रोश॑कं॒ तान्मह॑से वीणावा॒दं पा॑णि॒घ्नं तू॑णव॒ध्मं तान्नृ॒त्ताया॑न॒न्दाय॑ तल॒वम् ॥२० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

न॒र्माय॑। पुं॒श्च॒लूम्। हसा॑य। कारि॑म्। याद॑से। शा॒ब॒ल्याम्। ग्रा॒म॒ण्य᳕म्। ग्रा॒म॒न्य᳕मिति॑ ग्राम॒ऽन्य᳕म्। गण॑कम्। अ॒भि॒क्रोश॑क॒मित्य॑भि॒ऽक्रोश॑कम्। तान्। मह॑से। वी॒णा॒वा॒दमिति॑ वीणाऽवा॒दम्। पाणि॒घ्नमिति॑ पाणि॒ऽघ्नम्। तू॒ण॒व॒ध्ममिति॑ तूणव॒ऽध्मम्। तान्। नृ॒त्ताय॑। आ॒न॒न्दायेत्या॑ऽन॒न्दाय॑। त॒ल॒वम् ॥२० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:30» मन्त्र:20


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमेश्वर वा राजन् ! आप (नर्माय) क्रीड़ा के लिए प्रवृत्त हुई (पुंश्चलूम्) व्यभिचारिणी स्त्री को (हसाय) हंसने को प्रवृत्त हुए (कारिम्) विक्षिप्त पागल को और (यादसे) जलजन्तुओं के मारने को प्रवृत्त हुई (शाबल्याम्) कबरे मनुष्य की कन्या को दूर कीजिए (ग्रामण्यम्) ग्रामाधीश (गणकम्) ज्योतिषी और (अभिक्रोशकम्) सब ओर से बुलानेवाले जन (तान्) इन सब को (महसे) सत्कार के अर्थ (वीणावादम्) वीणा बजाने (पाणिघ्नम्) हाथों से वादित्र बजाने और (तूणवध्मम्) तूणवनामक बाजे को बजानेवाले (तान्) उन सब को (नृत्ताय) नाचने के लिए और (आनन्दाय) आनन्द के अर्थ (तलवम्) ताली आदि बजानेवाले को उत्पन्न वा प्रसिद्ध कीजिए ॥२० ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिए कि हंसी और व्यभिचारादि दोषों को छोड़ और गाने-बजाने-नाचने आदि की शिक्षा को प्राप्त होके आनन्दित होवें ॥२० ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(नर्माय) क्रीडायै प्रवृत्ताम् (पुंश्चलूम्) व्यभिचारिणीं स्त्रियम् (हसाय) हसनाय प्रवृत्तम् (कारिम्) विक्षेपकम् (यादसे) जलजन्तवे प्रवृत्ताम् (शाबल्याम्) शबलस्य कर्बुरवर्णस्य सुताम् (ग्रामण्यम्) ग्रामस्य नायकम् (गणकम्) गणितविदम् (अभिक्रोशकम्) योऽभितः क्रोशति आह्वयति तम् (तान्) (महसे) पूजनाय (वीणावादम्) (पाणिघ्नम्) यः पाणिभ्यां हन्ति तम् (तूणवध्मम्) यस्तूणवं धमति तम् (तान्) (नृत्ताय) नर्त्तनाय (आनन्दाय) (तलवम्) यो हस्तादि तलानि वाति हिनस्ति तम् ॥२० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमेश्वर राजन् वा ! त्वं नर्माय पुंश्चलूं हसाय कारीं यादसे शाबल्यां परासुव। ग्रामण्यं गणकमभिक्रोशकं तान् महसे वीणावादं पाणिघ्नं तूणवध्मं तान्नृत्तायाऽनन्दाय तलवमासुव ॥२० ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्हास्यव्यभिचारादिदोषांस्त्यक्त्वा गानवादित्रनृत्यादिकर्मणां शिक्षां प्राप्यानन्दितव्यम् ॥२० ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी चेष्टा, उपहास, व्यभिचार इत्यादी दोष सोडून द्यावे व गायन, वादन, नर्तन इत्यादींचे शिक्षण प्राप्त करून आनंदी व्हावे.