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अ॒क्ष॒रा॒जाय॑ कित॒वं कृ॒ताया॑दिनवद॒र्शं त्रेता॑यै क॒ल्पिनं॑ द्वा॒परा॑याधिक॒ल्पिन॑मास्क॒न्दाय॑ सभास्था॒णुं मृ॒त्यवे॑ गोव्य॒च्छमन्त॑काय गोघा॒तं क्षु॒धे यो गां वि॑कृ॒न्तन्तं॒ भिक्ष॑माणऽउप॒ तिष्ठ॑ति दुष्कृ॒ताय॒ चर॑काचार्यं पा॒प्मने॑ सैल॒गम् ॥१८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒क्ष॒रा॒जायेत्य॑क्षऽरा॒जाय॑। कि॒त॒वम्। कृ॒ताय॑। आ॒दि॒न॒व॒द॒र्शमित्या॑दिनवऽद॒र्शम्। त्रैता॑यै। क॒ल्पिन॑म्। द्वा॒परा॑य। अ॒धि॒क॒ल्पिन॒मित्य॑धिऽक॒ल्पिन॑म्। आ॒स्क॒न्दायेत्या॑ऽस्क॒न्दाय॑। स॒भा॒स्था॒णुमिति॑ सभाऽस्था॒णुम्। मृ॒त्यवे॑। गो॒व्य॒च्छमिति॑ गोऽव्य॒च्छम्। अन्त॑काय। गो॒घा॒तमिति॑ गोऽघा॒तम्। क्षु॒धे। यः। गाम्। वि॒कृ॒न्तन्त॒मिति॑ विऽकृ॒न्तन्त॑म्। भिक्ष॑माणः। उ॒प॒तिष्ठ॒तीत्यु॑प॒ऽतिष्ठ॑ति। दु॒ष्कृ॒ताय॑। दुः॒कृ॒तायेति॑ दुःऽकृ॒ताय॑। चर॑काचार्य्य॒मिति॒ चर॑कऽआचार्य्यम्। पा॒प्मने॑। सै॒ल॒गम् ॥१८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:30» मन्त्र:18


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर वा राजन् ! आप (अक्षराजाय) पासों से खेलनेवालों के प्रधान के हितकारी (कितवम्) जुआ करनेवाले को (मृत्यवे) मारने के अर्थ (गोव्यच्छम्) गौओं में बुरी चेष्टा करनेवाले को (अन्तकाय) नाश के अर्थ (गोघातम्) गौओं के मारनेवाले को (क्षुधे) क्षुधा के लिए (यः) जो (गाम्) गौ को मारता उस (विकृन्तन्तम्) काटते हुए को जो (भिक्षमाणाः) भीख माँगता हुआ (उपतिष्ठति) उपस्थित होता है (दुष्कृताय) दुष्ट आचरण के लिए प्रवृत्त हुए उस (चरकाचार्य्यम्) भक्षण करनेवालों के गुरु को (पाप्मने) पापी के हितकारी (सैलगम्) दुष्ट के पुत्र को दूर कीजिए (कृताय) किये हुए के अर्थ (आदिनवदर्शम्) आदि में नवीनों को देखनेवाले को (त्रेतायै) तीन के होने के अर्थ (कल्पिनम्) प्रशंसित सामर्थ्यवाले को (द्वापराय) दो जिस के इधर सम्बन्धी हों, उस के अर्थ (अधिकल्पिनम्) अधिकतर सामर्थ्ययुक्त को और (आस्कन्दाय) अच्छे प्रकार सुखाने के अर्थ (सभास्थाणुम्) सभा में स्थिर होनेवाले को प्रकट वा उत्पन्न कीजिए ॥१८ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य ज्योतिषी आदि सत्याचारियों का सत्कार करते और दुष्टाचारी गोहत्यारे आदि को ताड़ना देते हैं, वे राज्य करने को समर्थ होते हैं ॥१८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(अक्षराजाय) येऽक्षैः क्रीडन्ति तेषां राजा तस्मै हितम् (कितवम्) द्यूतकारिणम् (कृताय) (आदिनवदर्शम्) य आदौ नवान् पश्यति तम् (त्रेतायै) त्रयाणां भवाय (कल्पिनम्) कल्पः प्रशस्तं सामर्थ्यं विद्यते यस्य तम् (द्वापराय) द्वावपरौ यस्मिन् तस्मै (अधिकल्पिनम्) अधिगतसामर्थ्ययुक्तम् (आस्कन्दाय) समन्ताच्छोषणाय (सभास्थाणुम्) सभायां स्थितम् (मृत्यवे) मारणाय (गोव्यच्छम्) गोषु विचेष्टितारम् (अन्तकाय) नाशाय (गोघातम्) गवां घातकम् (क्षुधे) (यः) (गाम्) धेनुम् (विकृन्तन्तम्) विच्छेदयन्तम् (भिक्षमाणः) (उपतिष्ठति) (दुष्कृताय) दुष्टाचाराय प्रवृत्तम् (चरकाचार्यम्) चरकाणां भक्षकाणामाचार्य्यम् (पाप्मने) पापात्मने हितम् (सैलगम्) सीलाङ्गस्य दुष्टस्यापत्यं सैलगम् ॥१८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर वा राजन् ! त्वमक्षराजाय कितवं मृत्यवे गोव्यच्छमन्तकाय गोघातं क्षुधे यो गां छिनत्ति तं विकृन्तन्तं यो भिक्षमाण उपतिष्ठति दुष्कृताय तं चरकाचार्य्यं पाप्मने सैलगं परासुव। कृतायाऽऽदिनवदर्शं त्रैतायै कल्पिनं द्वापरायाऽधिकल्पिनमास्कन्दाय सभास्थाणुमासुव ॥१८ ॥
भावार्थभाषाः - ये ज्योतिर्विदादिसत्याचरणान् सत्कुर्वन्ति, दुष्टाचारान् गोघ्नादीन् ताडयन्ति, ते राज्यं कर्त्तुं शक्नुवन्ति ॥१८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे ज्योतिषी वगैरे सत्याचे आचरण करणाऱ्या लोकांचा सन्मान करतात व दुष्टाचरणी गोहत्या वगैरे करणाऱ्यांची ताडना करतात ते राज्य करण्यास समर्थ ठरतात.