वांछित मन्त्र चुनें

न॒हि तेषा॑म॒मा च॒न नाध्व॑सु वार॒णेषु॑। ईशे॑ रि॒पुर॒घश॑ꣳसः ॥३२॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

न॒हि। तेषा॑म्। अ॒मा। च॒न। न। अध्व॒स्वित्यध्व॑ऽसु। वा॒र॒णेषु॑। ईशे॑। रि॒पुः। अ॒घश॑ꣳस॒ इत्य॒घऽश॑ꣳसः ॥३२॥

यजुर्वेद » अध्याय:3» मन्त्र:32


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो ईश्वर की उपासना करनेवाले मनुष्य हैं (तेषाम्) उनके (अमा) गृह (अध्वसु) मार्ग और (वारणेषु) चोर, शत्रु, डाकू, व्याघ्र आदि के निवारण करनेवाले संग्रामों में (चन) भी (अघशंसः) पापरूप कर्मों का कथन करनेवाला (रिपुः) शत्रु (नहि) नहीं स्थित होता और (न) न उनको क्लेश देने को समर्थ हो सकता, उस ईश्वर और उन धार्मिक विद्वानों के प्राप्त होने को मैं (ईशे) समर्थ होता हूँ ॥३२॥
भावार्थभाषाः - जो धर्मात्मा वा सब के उपकार करनेवाले मनुष्य हैं, उनको भय कहीं नहीं होता और शत्रुओं से रहित मनुष्य का कोई शत्रु भी नहीं होता ॥३२॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(नहि) निषेधार्थे (तेषाम्) परमेश्वरोपासकानां सूर्यप्रकाशस्थितानां वा (अमा) गृहेषु। अमेति गृहनामसु पठितम्। (निघं०३.४) (चन) अपि (न) निषेधार्थे (अध्वसु) मार्गेषु (वारणेषु) वारयन्ति यैर्युद्धैस्तेषु वा वारयन्ति ये चौरदस्युव्याघ्रादयो येषु तेषु (ईशे) समर्थो भवामि (रिपुः) शत्रुः (अघशंसः) योऽघानि पापानि कर्माणि शंसति सः। अयं मन्त्रः (शत०२.३.४.३७) व्याख्यातः ॥३२॥

पदार्थान्वयभाषाः - य ईश्वरोपासकास्तेषाममा गृहेष्वध्वसु वारणेषु च नाप्यघशंसो रिपुर्नह्युत्तिष्ठते, न खलु तान् क्लेशयितुं शक्नोति तं तांश्चाहमीशे ॥३२॥
भावार्थभाषाः - ये धर्मात्मानः सर्वोपकारकाः सन्ति, नैव क्वापि तेषां भयं भवति, येऽजातशत्रवो नैव तेषां कश्चिदपि शत्रुर्जायते ॥३२॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे धर्मात्मा व परोपकारी असतात त्यांना कधीच भय वाटत नाही व जे कोणाचे शत्रू नसतात त्यांचा कोणीही शत्रू नसतो.