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होता॑ यक्ष॒त् त्वष्टा॑र॒मिन्द्रं॑ दे॒वं भि॒षज॑ꣳसु॒यजं॑ घृत॒श्रिय॑म्। पु॒रु॒रूप॑ꣳ सु॒रेत॑सं म॒घोन॒मिन्द्रा॑य॒ त्वष्टा॒ दध॑दिन्द्रि॒याणि॒ वेत्वाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑ ॥९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

होता॑। य॒क्ष॒त्। त्वष्टा॑रम्। इन्द्र॑म्। दे॒वम्। भि॒षज॑म्। सु॒यज॒मिति॑ सु॒ऽयज॑म्। घृ॒त॒श्रिय॒मिति॑ घृत॒ऽश्रिय॑म् पु॒रु॒रूप॒मिति॑ पुरु॒ऽरूप॑म्। सु॒रेत॑स॒मिति॑ सु॒ऽरेत॑सम्। म॒घोन॑म्। इन्द्रा॑य। त्वष्टा॑। दध॑त्। इ॒न्द्रि॒याणि॑। वेतु॑। आज्य॑स्य। होतः॑। यज॑ ॥९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:28» मन्त्र:9


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (होतः) शुभगुणों के दाता ! जैसे (होता) पथ्य आहार-विहार कर्त्ता जन (त्वष्टारम्) धातुवैषम्य से हुए दोषों को नष्ट करनेवाले (सुरेतसम्) सुन्दर पराक्रमयुक्त (मघोनम्) परम प्रशस्त धनवान् (पुरुरूपम्) बहुरूप (घृतश्रियम्) जल से शोभायमान (सुयजम्) सुन्दर सङ्ग करनेवाले (भिषजम्) वैद्य (देवम्) तेजस्वी (इन्द्रम्) ऐश्वर्यवान् पुरुष का (यक्षत्) सङ्ग करता है और (आज्यस्य) जानने योग्य वचन के (इन्द्राय) प्रेरक जीव के लिए (इन्द्रियाणि) कान आदि इन्द्रियों वा धनों को (दधत्) धारण करता हुआ (त्वष्टा) तेजस्वी हुआ (वेतु) प्राप्त होता है, वैसे तू (यज) सङ्ग कर ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! तुम लोग आप्त, सत्यवादी, रोगनिवारक, सुन्दर ओषधि देने, धन ऐश्वर्य के बढ़ानेवाले वैद्यजन का सेवन कर शरीर, आत्मा, अन्तःकरण और इन्द्रियों के बल को बढ़ा के परम ऐश्वर्य को प्राप्त होओ ॥९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(होता) (यक्षत्) (त्वष्टारम्) दोषविच्छेदकम् (इन्द्रम्) ऐश्वर्यवन्तम् (देवम्) देदीप्यमानम् (भिषजम्) वैद्यम् (सुयजम्) सुष्ठु सङ्गन्तारम् (घृतश्रियम्) घृतेनोदकेन शोभमानम् (पुरुरूपम्) बहुरूपम् (सुरेतसम्) सुष्ठु वीर्यम् (मघोनम्) परमपूजितधनम् (इन्द्राय) जीवाय (त्वष्टा) प्रकाशकः (दधत्) धरन् सन् (इन्द्रियाणि) श्रोत्रादीनि धनानि वा (वेतु) प्राप्नोतु (आज्यस्य) ज्ञातुं योग्यस्य (होतः) (यज) ॥९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे होतर्यथा होता त्वष्टारं सुरेतसं मघोनं पुरुरूपं घृतश्रियं सुयजं भिषजं देवमिन्द्रं यक्षदाज्यस्येन्द्रायेन्द्रियाणि दधत् सन् त्वष्टा वेतु तथा यज ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः ! यूयमाप्तं रोगनिवारकं श्रेष्ठौषधदायकं धनैश्वर्यवर्द्धकं वैद्यं सेवित्वा शरीरात्माऽन्तःकरणेन्द्रियाणां बलं वर्द्धयित्वा परमैश्वर्यं प्राप्नुत ॥९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! तुम्ही आप्त, सत्यवादी, रोगनिवारक, धन ऐश्वर्य वाढविणाऱ्या वैद्यांच्या औषधांनी शरीर, आत्मा, अंतःकरण इत्यादी इंद्रियांचे बल वाढवून परम ऐश्वर्य प्राप्त करा.