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दे॒वोऽअ॒ग्निः स्वि॑ष्ट॒कृद् दे॒वमिन्द्रं॑ वयो॒धसं॑ दे॒वो दे॒वम॑वर्धयत्। अति॑छन्दसा॒ छन्द॑सेन्द्रि॒यं क्ष॒त्रमिन्द्रे॒ वयो॒ दध॑द् वसु॒धेय॑स्य वसु॒वने॑ वेतु॒ यज॑ ॥४५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दे॒वः। अ॒ग्निः। स्वि॒ष्ट॒कृदिति॑ स्विष्ट॒ऽकृत्। दे॒वम्। इन्द्र॑म्। व॒यो॒धस॒मिति॑ वयः॒ऽधस॑म्। दे॒वः। दे॒वम्। अ॒व॒र्ध॒य॒त्। अति॑छन्द॒सेत्यति॑ऽछन्दसा। छन्द॑सा। इ॒न्द्रि॒यम्। क्ष॒त्रम्। इन्द्रे॑। वयः॑। दध॑त्। व॒सु॒धेय॒स्येति॑ वसु॒ऽधेय॑स्य। व॒सु॒वन॒ इति॑ वसु॒ऽवने॑। वे॒तु॒। यज॑ ॥४५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:28» मन्त्र:45


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जैसे (स्विष्टकृत्) सुन्दर अभीष्ट को सिद्ध करनेहारा (देवः) सर्वज्ञ (अग्निः) स्वयं प्रकाशस्वरूप ईश्वर (वयोधसम्) अवस्था के धारक (देवम्) धार्मिक (इन्द्रम्) जीव को जैसे (देवः) विद्वान् (देवम्) विद्यार्थी को वैसे (अवर्धयत्) बढ़ाता है (अतिछन्दसा, छन्दसा) अतिजगती आदि आनन्दकारक छन्द से (इन्द्रे) विद्या, विनय से युक्त राजा के निमित्त (वसुधेयस्य) धनकोष के (वसुवने) धन के दाता के लिए (वयः) मनोहर वस्तु (क्षत्रम्) राज्य और (इन्द्रियम्) जीवन से सेवन किए हुए इन्द्रिय को (दधत्) धारण करता हुआ (वेतु) व्याप्त होवे, वैसे (यज) यज्ञादि उत्तम कर्म कीजिए ॥४५ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे विद्वान् मनुष्यो ! जैसे परमेश्वर ने अपनी दया से सब पदार्थों को उत्पन्न कर और जीवों के लिए समर्पण करके जगत् की वृद्धि की है, वैसे विद्या, विनय, सत्सङ्ग, पुरुषार्थ और धर्म के अनुष्ठानों से राज्य को बढ़ाओ ॥४५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(देवः) सर्वज्ञः (अग्निः) स्वप्रकाशस्वरूप ईश्वरः (स्विष्टकृत्) यः शोभनमिष्टं करोति सः (देवम्) धार्मिकम् (इन्द्रम्) जीवम् (वयोधसम्) आयुषो धर्त्तारम् (देवः) विद्वान् (देवम्) विद्यार्थिनम् (अवर्धयत्) वर्धयति (अतिछन्दसा) अतिजगत्यादिना (छन्दसा) आह्लादकरेण (इन्द्रियम्) जीवेन सेवितम् (क्षत्रम्) राज्यम् (इन्द्रे) विद्याविनयान्विते (वयः) कमनीयं वस्तु (दधत्) (वसुधेयस्य) (वसुवने) (वेतु) व्याप्नोतु (यज) ॥४५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यथा स्विष्टकृद्देवोऽग्निर्वयोधसं देवमिन्द्रं देवो देवमिवावर्धयदतिछन्दसा छन्दसेन्द्रे वसुधेयस्य वसुवने वयः क्षत्रमिन्द्रियं दधत् सन् वेतु तथा यज ॥४५ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे विद्वांसो मनुष्याः ! यथा परमेश्वरेण दयया सर्वान् पदार्थानुत्पाद्य जीवेभ्यः समर्प्य जगद्वृद्धिः कृता, तथा विद्याविनयसत्सङ्गपुरुषार्थधर्मानुष्ठानै राज्यं वर्धयत ॥४५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे विद्वान माणसांनो ! जसे परमेश्वराने दयाळूपणे जीवांसाठी सर्व पदार्थ उत्पन्न करून हे जग समृद्ध बनविलेले आहे. तसे विद्या, विनय, सत्संग, पुरुषार्थ व धर्मानुष्ठानाने राज्य वाढवा.