वांछित मन्त्र चुनें

दे॒वा दैव्या॒ होता॑रा दे॒वमिन्द्रं॑ वयो॒धसं॑ दे॒वौ दे॒वम॑वर्धताम्। त्रि॒ष्टुभा॒ छन्द॑सेन्द्रि॒यं त्विषि॒मिन्द्रे॒ वयो॒ दध॑द् वसु॒वने॑ वसु॒धेय॑स्य वीतां॒ यज॑ ॥४० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दे॒वा। दैव्या॑। होता॑रा। दे॒वम्। इन्द्र॑म्। व॒यो॒धस॒मिति॑ वयः॒ऽधस॑म्। दे॒वौ। दे॒वम्। अ॒व॒र्ध॒ता॒म्। त्रि॒ष्टुभा॑। त्रि॒ऽस्तुभेति॑ त्रि॒ऽस्तुभा॑। छन्द॑सा। इ॒न्द्रि॒यम्। त्विषि॑म्। इन्द्रे॑। वयः॑। दध॑त्। व॒सु॒वन॒ इति॑ वसु॒ऽवने॑। व॒सु॒धेय॒स्येति॑ वसु॒ऽधेय॑स्य। वी॒ता॒म्। यज॑ ॥४० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:28» मन्त्र:40


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर स्त्री पुरुषों को क्या करना चाहिए, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (होतारा) दानशील अध्यापक उपदेशक लोगो ! जैसे (दैव्या) कामना के योग्य पदार्थ बनाने में कुशल (देवा) चाहने योग्य दो विद्वान् (वयोधसम्) अवस्था के धारक (देवम्) कामना करते हुए (इन्द्रम्) जीवात्मा को जैसे (देवौ) शुभगुणों की चाहना करते हुए माता-पिता (देवम्) अभीष्ट पुत्र को बढ़ावें, वैसे (अवर्धताम्) बढ़ावें, (वसुधेयस्य) धनकोष के (वसुवने) धन सेवनेवाले जन के लिए (वीताम्) प्राप्त हूजिए तथा हे विद्वन् पुरुष ! (त्रिष्टुभा, छन्दसा) छन्द से (इन्द्रे) आत्मा में (त्विषिम्) प्रकाशयुक्त (इन्द्रियम्) कान आदि इन्द्रिय और (वयः) सुख को (दधत्) धारण करता हुआ तू (यज) यज्ञादि उत्तम कर्म कर ॥४० ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे पढ़ने और उपदेश करने हारे विद्यार्थी और शिष्यों को तथा माता-पिता सन्तानों को बढ़ाते हैं, वैसे विद्वान् स्त्री-पुरुष वेदविद्या से सब को बढ़ावें ॥४० ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स्त्रीपुंसाभ्यां किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(देवा) कमनीयौ विद्वांसौ (दैव्या) कमनीयेषु कुशलौ (होतारा) दातारावध्यापकोपदेशकौ (देवम्) कामयमानम् (इन्द्रम्) जीवम् (वयोधसम्) आयुर्धारकम् (देवौ) शुभगुणान् कामयमानौ मातापितरौ (देवम्) कमनीयं पुत्रम् (अवर्धताम्) वर्धयतः (त्रिष्टुभा) (छन्दसा) (इन्द्रियम्) श्रोत्रादि (त्विषिम्) प्रकाशयुक्तम् (इन्द्रे) स्वात्मनि (वयः) (दधत्) (वसुवने) (वसुधेयस्य) (वीताम्) (यज) ॥४० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे होतारा ! यथा दैव्या देवा वयोधसं देवमिन्द्रं देवौ देवमिवाऽवर्द्धतां तथा वसुधेयस्य वसुवने वीताम्। हे विद्वन् ! त्रिष्टुभा छन्दसेन्द्रे त्विषिमिन्द्रियं वयो दधत् सन् त्वं यज ॥४० ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथाऽध्यापकोपदेशकौ विद्यार्थिशिष्यौ मातापितरावपत्यानि वर्धयतस्तथा विद्वांसौ स्त्रीपुरुषौ वेदविद्यया सर्वान् वर्द्धयेताम् ॥४० ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे अध्यापक व उपदेशक विद्यार्थी व शिष्यांची उन्नती होण्यास साह्य करतात आणि माता, पिता संतानांची उन्नती करण्यासाठी हातभार लावतात तसे विद्वान स्री-पुरुषांनी वेदविद्येने सर्वांना उन्नत करावे.