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होता॑ यक्ष॒त्तनू॒नपा॑तमु॒द्भिदं॒ यं गर्भ॒मदि॑तिर्द॒धे शुचि॒मिन्द्रं॑ वयो॒धस॑म्। उ॒ष्णिहं॒ छन्द॑ऽ इन्द्रि॒यं दि॑त्य॒वाहं॒ गां वयो॒ दध॒द्वेत्वाज्य॑स्य॒ होत॒र्यज॑ ॥२५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

होता॑। य॒क्ष॒त्। तनू॒नपा॑त॒मिति॒ तनू॒ऽनपा॑तम्। उ॒द्भिद॒मित्यु॒त्ऽभिद॑म्। यम्। गर्भ॑म्। अदि॑तिः। द॒धे। शुचि॑म्। इन्द्र॑म्। व॒यो॒धस॒मिति॑ वयः॒धस॑म्। उ॒ष्णिह॑म्। छन्दः॑। इ॒न्द्रि॒यम्। दि॒त्य॒वाह॒मिति॑ दित्य॒ऽवाह॑म्। गाम्। वयः॑। दध॑त्। वेतु॑। आज्य॑स्य। होतः॑। यज॑ ॥२५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:28» मन्त्र:25


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (होतः) ज्ञान के यज्ञ के कर्त्तः ! जैसे (होता) शुभ गुणों का ग्रहण करनेवाला जन (तनूनपातम्) शरीरादि के रक्षक (उद्भिदम्) शरीर का भेदन कर निकलनेवाले (गर्भम्) गर्भ को जैसे (अदितिः) माता धारण करती, वैसे (यम्) जिस को (दधे) धारण करता है, (वयोधसम्) अवस्था के वर्धक (शुचिम्) पवित्र (इन्द्रम्) सूर्य्य को (यक्षत्) हवन का पदार्थ पहुँचाता है, (आज्यस्य) विज्ञानसम्बन्धी (उष्णिहम्) उष्णिक् छन्द से कहे हुए (छन्दः) बलकारी (इन्द्रियम्) जीव के श्रोत्रादि चिह्नों और (दित्यवाहम्) खण्डितों को पहुँचानेवाले (गाम्) वाणी और (वयः) सुन्दर-सुन्दर पक्षियों को (दधत्) धारण करता हुआ (वेतु) प्राप्त होवे, वैसे इन सब को आप (यज) सङ्गत कीजिये ॥२५ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! आप लोग जैसे माता गर्भ और उत्पन्न हुए बालक की रक्षा करती है, वैसे शरीर और इन्द्रियों की रक्षा करके विद्या और आयुर्दा को बढ़ाओ ॥२५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(होता) आदाता (यक्षत्) (तनूनपातम्) शरीरादिरक्षकम् (उद्भिदम्) य उद्भिद्य जायते तम् (यम्) (गर्भम्) गर्भ इव स्थितम् (अदितिः) माता (दधे) दधाति (शुचिम्) पवित्रम् (इन्द्रम्) सूर्यम् (वयोधसम्) वयोवर्धकम् (उष्णिहम्) उष्णिहा प्रतिपादितम् (छन्दः) बलकरम् (इन्द्रियम्) इन्द्रस्य जीवस्य लिङ्गम् (दित्यवाहम्) यो दित्यान् खण्डितान् वहति गमयति तम् (गाम्) वाचम् (वयः) कमनीयान् (दधत्) (वेतु) (आज्यस्य) (होतः) (यज) ॥२५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे होतर्यथा होता तनूनपातमुद्भिदमदितिर्गर्भमिव यं दधे वयोधसं शुचिमिन्द्रं यक्षदाज्यस्योष्णिहं छन्द इन्द्रियं दित्यवाहं गां वयश्च दधत् सन् वेतु तथैतान् यज ॥२५ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः ! भवन्तो यथा माता गर्भं जातं बालं च रक्षति, तथा शरीरमिन्द्रियाणि च रक्षयित्वा विद्यायुषी वर्धयन्तु ॥२५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जशी माता गर्भाचे व जन्मानंतरही बाळाचेही रक्षण करते तसे शरीर व इंद्रिये यांचे रक्षण करून विद्या व आयुष्य वाढवा.