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ऊ॒र्जो नपा॑त॒ꣳस हि॒नायम॑स्म॒युर्दाशे॑म ह॒व्यदा॑तये। भुव॒द्वाजे॑ष्ववि॒ता भुव॑द् वृ॒धऽउ॒त त्रा॒ता त॒नूना॑म् ॥४४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ऊ॒र्जः। नपा॑तम्। सः। हि॒न। अ॒यम्। अ॒स्म॒युरित्य॑स्म॒ऽयुः। दाशे॑म। ह॒व्यदा॑तय॒ इति॑ ह॒व्यऽदा॑तये। भुव॑त्। वाजे॑षु। अ॒वि॒ता। भुव॑त्। वृ॒धे। उ॒त। त्रा॒ता। त॒नूना॑म् ॥४४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:27» मन्त्र:44


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्यार्थिन् ! (सः) सो आप (ऊर्जः) पराक्रम को (नपातम्) न नष्ट करने हारे विद्याबोध को (हिन) बढ़ाइये, जिससे (अयम्) यह प्रत्यक्ष आप (अस्मयुः) हम को चाहने और (वाजेषु) संग्रामों में (अविता) रक्षा करनेवाले (भुवत्) होवें (उत) और (तनूनाम्) शरीरों के (वृधे) बढ़ने के अर्थ (त्राता) पालन करनेवाले (भुवत्) होवें, इससे आपको (हव्यदातये) देने योग्य पदार्थों के देने के लिये हम लोग (दाशेम) स्वीकार करें ॥४४ ॥
भावार्थभाषाः - जो पराक्रम और बल को न नष्ट करे, शरीर और आत्मा की उन्नति करता हुआ रक्षक हो, उसके लिये आप्त जन विद्या देवें। जो इस से विपरीत लम्पट, दुष्टाचारी, निन्दक हो, वह विद्याग्रहण में अधिकारी नहीं होता, यह जानो ॥४४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(ऊर्जः) पराक्रमस्य (नपातम्) अपातितारं विद्याबोधनम् (सः) (हिन) हिनु वर्द्धय। अत्र ‘हि गतौ वृद्धौ च’ इत्यस्माल्लोण्मध्यमैकवचने वर्णव्यत्ययेन उकारस्य अकारः। (अयम्) (अस्मयुः) योऽस्मान् कामयते (दाशेम) स्वीकुर्याम (हव्यदातये) दातव्यानां दानाय (भुवत्) भवेत् (वाजेषु) सङ्ग्रामेषु (अविता) रक्षिता (भुवत्) भवेत् (वृधे) वर्धनाय (उत) अपि (त्राता) (तनूनाम्) शरीराणाम् ॥४४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्यार्थिन् ! स त्वमूर्जो नपातं हिन यतोऽयं भवानस्मयुर्वाजेष्वविता भुवदुतापि तनूनां वृधे त्राता भुवत्। ततस्त्वां हव्यदातये वयं दाशेम ॥४४ ॥
भावार्थभाषाः - यः पराक्रमं वीर्यं च न हन्याच्छरीरात्मनोर्वर्धकः सन् रक्षकः स्यादाप्तास्तस्मै विद्यां दद्युः। योऽस्माद् विपरीतोऽजितेन्द्रियो दुष्टाचारी निन्दको भवेत्, स विद्याग्रहणेऽधिकारी न भवतीति वेद्यम् ॥४४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो पराक्रम व बल नष्ट करत नाहीत आणि शरीर व आम्ता यांचा रक्षक बनून उन्नती करतो त्याला आप्त (श्रेष्ठ) लोकांनी विद्या द्यावी. जो याविरुद्ध लंपट, दुराचारी, निंदक असेल त्याला विद्या ग्रहण करण्याचा अधिकार नाही हे जाणावे.