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प्र याभि॒र्यासि॑ दा॒श्वास॒मच्छा॑ नि॒युद्भि॑र्वायवि॒ष्टये॑ दुरो॒णे। नि नो॑ र॒यिꣳ सु॒भोज॑सं युवस्व॒ नि वी॒रं गव्य॒मश्व्यं॑ च॒ राधः॑ ॥२७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। याभिः॑। यासि॑। दा॒श्वास॑म्। अच्छ॑। नि॒युद्भि॒रिति॑ नि॒युत्ऽभिः॑। वा॒यो॒ इति॑ वायो। इ॒ष्टये॑। दु॒रो॒णे। नि। नः॒। र॒यिम्। सु॒भोज॑स॒मिति॑ सु॒ऽभोज॑सम्। यु॒व॒स्व॒। नि। वी॒रम्। गव्य॑म्। अश्व्य॑म्। च॒। राधः॑ ॥२७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:27» मन्त्र:27


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विद्वान् को कैसा होना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वायो) विद्वन् ! वायु के समान वर्त्तमान आप (प्र, याभिः) अच्छे प्रकार चाहने योग्य (नियुद्भिः) नियत गुणों से (इष्टये) अभीष्ट सुख के अर्थ (अच्छ, यासि) अच्छे प्रकार प्राप्त होते हो। (दुरोणे) घर में (नः) हमारे (सुभोजसम्) सुन्दर भोगने के हेतु (दाश्वांसम्) सुख के दाता (रयिम्) धन को (नि, युवस्व) निरन्तर मिश्रित कीजिये। (वीरम्) विज्ञानादि गुणों को प्राप्त (गव्यम्) गौ के हितकारी (च) तथा (अश्व्यम्) घोड़े के लिये हितैषी (राधः) धन को (नि) निरन्तर प्राप्त कीजिये ॥२७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे वायु सब जीवन आदि इष्ट कर्मों को सिद्ध करता है, वैसे विद्वान् पुरुष इस संसार में वर्त्ते ॥२७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

विदुषा कथं भवितव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(प्र) (याभिः) कमनीयाभिः (यासि) प्राप्नोषि (दाश्वांसम्) सुखस्य दातारम् (अच्छ) अत्र निपातस्य च [अ०६.३.१३६] इति दीर्घः। (नियुद्भिः) नियतैर्गुणैः (वायो) वायुरिव वर्त्तमान (इष्टये) अभीष्टसुखाय (दुरोणे) गृहे (नि) नितराम् (नः) अस्माकम् (रयिम्) धनम् (सुभोजसम्) सुष्ठु भोजनानि यस्मात् तम् (युवस्व) मिश्रयस्व (नि) (वीरम्) प्राप्तविज्ञानादिगुणम् (गव्यम्) गोभ्यो हितम् (अश्व्यम्) अश्वेभ्यो हितम् (च) (राधः) धनम् ॥२७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! वायो वायुरिव त्वं प्रयाभिर्नियुद्भिरिष्टयेऽच्छ यासि, दुरोणे नः सुभोजसं दाश्वांसं रयिं नियुवस्व, वीरं गव्यमश्व्यं च राधो नि युवस्व। २७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा वायुः सर्वाणि जीवनादीनीष्टानि कर्माणि साध्नोति तथा विद्वानस्मिन् संसारे वर्त्तेत ॥२७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा वायू सर्व जीवन इत्यादी इष्ट कर्त सिद्ध करतो तसे विद्वानांनी या जगात जगावे.