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वै॒श्वा॒न॒रो न॑ ऊ॒तय॒ऽआ प्र या॑तु परा॒वतः॑। अ॒ग्निरु॒क्थेन॒ वाह॑सा। उ॒प॒या॒मगृ॑हीतोऽसि वैश्वान॒राय॑ त्वै॒ष ते॒ योनि॑र्वैश्वान॒राय॑ त्वा ॥८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वै॒श्वा॒न॒रः। नः॒। ऊ॒तये॑। आ। प्र। या॒तु। प॒रा॒वतः॑। अ॒ग्निः। उ॒क्थेन॑। वाह॑सा। उ॒प॒या॒मगृ॑हीत इत्यु॑पया॒मऽगृ॑हीतः। अ॒सि॒। वै॒श्वा॒न॒राय॑। त्वा॒। ए॒षः। ते॒। योनिः॑। वै॒श्वा॒न॒राय॑। त्वा॒ ॥८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:26» मन्त्र:8


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य किसके समान क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जैसे (वैश्वानरः) समस्त नायक जनों में प्रकाशमान विद्वान् (परावतः) दूर से (नः) हमारी (ऊतये) रक्षा के लिये (आ, प्र, यातु) अच्छे प्रकार आवे, वैसे (अग्निः) अग्नि के समान तेजस्वी मनुष्य (उक्थेन) प्रशंसा करने योग्य (वाहसा) व्यवहार के साथ प्राप्त हो। जो आप (वैश्वानराय) प्रकाशमान के लिये (उपयामगृहीतः) विद्या के विचार से युक्त (असि) हैं, उन (त्वा) आप को तथा जिन (ते) आप का (एषः) यह घर (वैश्वानराय) समस्त नायकों में उत्तम नायकों में उत्तम के लिये (योनिः) घर है, उन (त्वा) आप को भी हम लोग स्वीकार करें ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य दूर देश से अपने प्रकाश से दूरस्थ पदार्थों को प्रकाशित करता है, वैसे ही विद्वान् जन अपने सुन्दर उपदेश से दूरस्थ जिज्ञासुओं को प्रकाशित करते हैं ॥८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किंवत् किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

(वैश्वानरः) विश्वेषु नायकेषु विद्वत्सु राजमानः (नः) अस्माकम् (ऊतये) रक्षणाद्याय (आ) (प्र, यातु) गच्छतु (परावतः) दूरदेशात् (अग्निः) पावकवद्वर्त्तमानः (उक्थेन) प्रशंसनीयेन (वाहसा) प्रापणेन (उपयामगृहीतः) विद्याविचारसंयुक्तः (असि) (वैश्वानराय) प्रकाशमानाय (त्वा) त्वाम् (एषः) (ते) तव (योनिः) गृहम् (वैश्वानराय) (त्वा) त्वाम् ॥८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यथा वैश्वानरः परावतो न ऊतय आ प्रयातु तथाऽग्निरुक्थेन वाहसा सहाप्नोतु यस्त्वं वैश्वानरायोपयामगृहीतोऽसि तं त्वा यस्यैष ते वैश्वानराय योनिरस्ति तं त्वा च स्वीकुर्मः ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोमालङ्कारः। यथा सूर्यो दूरदेशात् स्वप्रकाशेन दूरस्थान् पदार्थान् प्रकाशयति तथा विद्वांसः स्वसूपदेशेन दूरस्थान् जिज्ञासून् प्रकाशयन्ति ॥८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सूर्य जसा दूर असलेल्या पदार्थांना आपल्या प्रकाशाने प्रकाशित करतो, तसेच विद्वान लोक दूर असलेल्या जिज्ञासू लोकांनाही आपल्या उपदेशाने प्रभावित करतात.